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________________ ६३६ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [मानन्द मुनि का म. से समाधान रियों की तरह भस्म कर दूंगा। अतः उनके पास जाकर तू यह बात सुना दे।" प्रानन्द मुनि का म० से समाधान गोशालक की बात सुनकर आनन्द सरलता के कारण बहुत भयभीत हुए. और महावीर के पास आकर सारा वृत्तान्त उन्होंने कह सुनाया तथा पूछा"क्या गोशालक तीर्थंकर को भस्म कर सकता है ?" महावीर ने कहा-"आनन्द ! गोशालक अपने तपस्तेज से किसी को भी एक बार में भस्म कर सकता है, परन्तु अरिहन्त भगवान् को नहीं जला सकता, कारण कि गोशालक में जितना तपस्तेज है, अनगार का उससे अनन्त गुना तेज है । अनगार क्षमा द्वारा उस क्रोध का निरोध करने में समर्थ हैं। अनगार के तपस्तेज से स्थविर का तप अनन्त गुना विशिष्ट है । सामान्य स्थविर के तप से अरिहन्त का तपोबल अनन्त गुना अधिक है क्योंकि उसकी क्षमा अतुल है, अतः कोई उनको नहीं जला सकता। हां, परिताप-कष्ट उत्पन्न कर सकता है। इसलिए तुम जानो और गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों से यह कह दो कि गोशालक इधर पा रहा है। इस समय वह द्वेषवश म्लेच्छ की तरह दुर्भाव में है। इसलिए उसकी बातों का कोई कुछ भी उत्तर न दे। यहां तक कि उसके साथ कोई धर्मचर्चा भी न करे और न धार्मिक प्रेरणा ही दे।" गोशालक का प्रागमन आनन्द ने प्रभु का सन्देश सबको सुनाया ही था कि इतने में गोशालक अपने प्राजीवक संघ के साथ महावीर के पास कोष्ठक उद्यान में आ पहुँचा । वह भगवान् से कुछ दूर हटकर खड़ा हो गया और थोड़ी देर के बाद बोला"काश्यप ! तुम कहते हो कि मंखलिपुत्र गोशालक तुम्हारा शिष्य है । बात ठीक है । पर, तुमको पता नहीं कि वह तुम्हारा शिष्य मृत्यु प्राप्त कर देवलोक में देव हो चुका है। मैं मंखलिपुत्र गोशालक से भिन्न कौडिन्यायन गोत्रीय उदायी है। गोशालक का शरीर मैंने इसलिए धारण किया है कि वह परीषह सहने में सक्षम है । यह मेरा सातवाँ शरीरान्तर प्रवेश है।" "हमारे धर्म सिद्धान्त के अनसार जो भी मोक्ष गए हैं, जाते हैं और जाएंगे, वे सब चौरासी लाख महाकल्प के उपरांत सात दिव्य संयूथ-निकाय, सात सन्निगर्भ और सात प्रवृत्त परिहार करके पांच लाख साठ हजार छ: सौ तीन (५६०६०३) कर्माशों का अनुक्रम से क्षय करके मोक्ष गए, जाते हैं और जाएंगे।" महाकल्प का कालमान समझाने हेतु जैन सिद्धान्त के पल्य और सागर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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