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________________ केवलीचर्या का चौदहवां वर्ष] भगवान् महावीर ६३३ उपस्थित जनों को धर्म देशना दी । देशना से प्रभावित हो अनेक गृहस्थों ने मुनि धर्म अंगीकार किया। उनमें श्रेणिक के पद्म १, महापद्म २, भद्र ३, सुभद्र ४, महाभद्र ५, पद्मसेन ६, पद्मगुल्म ७, नलिनीगुल्म ८, आनन्द ६ और नन्दन १०, ये दस पौत्र प्रमुख थे।' इनके अतिरिक्त जिनपालित आदि ने भी श्रमणधर्म अंगीकार किया। यहीं पर पालित जैसे बड़े व्यापारी ने श्रावकधर्म स्वीकार किया था। इस वर्ष का चातुर्मास चम्पा में ही हुआ। केवलीचर्या का चौदहवां वर्ष चम्पा से भगवान ने विदेह की अोर विहार किया। बीच में काकन्दी नगरी में गाथा-पति 'खेमक' और 'धतिधर' ने प्रभु के पास दीक्षा स्वीकार की। १६ वर्षों का संयम पाल कर दोनों विपुलाचल पर सिद्ध हुए। विहार करते हुए प्रभु मिथिला पधारे और वहीं पर वर्षाकाल पूर्ण किया। फिर वर्षाकाल के पश्चात प्रभ विहारक्रम से अंगदेश होकर चम्पानगरी पधारे और 'पूर्णभद्र' नामक चैत्य में समवशरण किया। प्रभु के पधारने का समाचार पाकर नागरिक लोग और राजघराने की राजरानियां वन्दन करने को गई। उस समय वैशाली में युद्ध चल रहा था। एक अोर १८ गणराजा और दूसरी ओर कौणिक तथा उसके दस भाई अपने दल-बल सहित जूझ रहे थे। देशना समाप्त होने पर काली आदि रानियों ने अपने पुत्रों के लिए भगवान् से जिज्ञासा की-"भगवन् ! हमारे पुत्र युद्ध में गए हैं। उनका क्या होगा? वे कब तक कुशलपूर्वक लौटेंगे?" काली प्रावि रानियों को बोष उत्तर में भगवान् द्वारा पुत्रों का मरण सुनकर काली आदि रानियों को अपार दुःख हुमा । पर प्रभु के वचनों से संसार का विनश्वरशील स्वभाव समझ कर वे विरक्त हुई और कोणिक की अनुमति से भगवान् के चरणों में दीक्षित हो गई। प्रार्या चन्दना की सेवा में काली १, सुकाली २, महाकाली ३, कृष्णा ४, सुकृष्णा ५, महाकृष्णा ६, वीरकृष्णा ७, रामकृष्णा ८, पितृसेनकृष्णा और महासेनकृष्णा १०, इन सबने दीक्षित होकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। भार्या चन्दना की अनुमति से काली ने रत्नावली, सुकाली ने कनकावली, महा १ निरयावलिका २ २ निरयावलिका, अध्ययन १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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