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स्कंदक के प्रश्नोत्तर भगवान् महावीर
६३१ था कि परिव्राजक स्कंदक भी आ पहुंचा । गौतम ने स्वागत करते हुए पूछा"स्कंदक ! क्या यह सच है कि पिंगल नियंठ ने तुमसे कुछ प्रश्न पूछे और उनके उत्तर नहीं दे सकने से तुम यहाँ आये हो ?"
गौतम की बात सुनकर स्कंदक बड़ा चकित हुआ और बोला-"गौतम ! ऐसा कौन ज्ञानी है, जिसने हमारी गुप्त बात तुम्हें बतला दी ?"
गौतम ने भगवान की सर्वज्ञता की महिमा बतलाई। स्कंदक परिव्राजक ने बड़ी श्रद्धा से भगवान् को वन्दन कर अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत की।
भगवान ने लोक के विषय में कहा-"स्कंदक ! लोक चार प्रकार का है, द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक । द्रव्य से लोक एक और सान्त है, क्षेत्र से लोक असंख्य कोटिकोटि योजन का है, वह भी सान्त है। काल से लोक की कभी आदि नहीं और अन्त भी नहीं । भाव से लोक वर्णादि अनन्त-अनन्त पर्यायों का भंडार है, इसलिये वह अनन्त है। इस प्रकार लोक सान्त भी है और वर्णादि पर्यायों का अन्त नहीं होने से अनन्त भी है।
जीव, सिद्धि और सिद्ध भी इसी तरह द्रव्य से एक अोर अन्त वाले हैं। क्षेत्र से सीमित क्षेत्र में हैं, अतः सान्त हैं । काल एवं भाव से कभी जीव या सिद्ध नहीं था, ऐसा नहीं है और अनन्त-अनन्त पर्यायों के आधार हैं, अतः अनन्त हैं।
मरण विषय में पूछे गये प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-बाल-मरण और पण्डित-मरण के रूप में मरण दो प्रकार का है । बाल-मरण से संसार बढ़ता है
और पण्डित के ज्ञानपूर्वक समाधि-मरण से संसार घटता है। बाल-मरण के बारह प्रकार हैं । क्रोध, लोभ या मोहादि भाव में अज्ञानपूर्वक असमाधि से मरना बाल-मरण है।"
उपर्यत रोति से समाधान पाकर स्कन्दक ने प्रभ के चरणों में प्रवजित होने की अपनी इच्छा एवं आस्था प्रकट की। स्कन्दक को योग्य जानकर भगवान ने भी प्रव्रज्या प्रदान की तथा श्रमरण-जीवन की चर्या से अवगत किया।
दीक्षा ग्रहण कर स्कन्दक मुनि बन गया। उसने बारह वर्ष तक साधु-धर्म का पालन किया और भिक्षु प्रतिमा व गुण-रत्न-संवत्सर आदि विविध तपों से प्रात्मा को भावित कर अंत में 'विपुलाचल' पर समाधिपूर्वक देह-त्याग किया।
कयंगला से सावत्थी होते हुए प्रभु 'वाणिय ग्राम' पधारे और वर्षा काल यहीं पर पूर्ण किया। १ भगवती सूत्र २॥१॥ सू० ६१ ।
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