________________
दशम वर्ष ]
भगवान् महावीर
६२६
भगवान् ने कहा- "अंडा किससे उत्पन्न हुआ ? मुर्गी से । मुर्गी कहाँ से आई ? तो कहना होगा अंडे से उत्पन्न हुई । इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कौन पहले और कौन पीछे । इनमें शाश्वतभाव है, यह अनादि परम्परा है अतः पहले पीछे का क्रम नहीं कह सकते ।" इस प्रकार भगवान् ने रोहक की अन्य शंकाओं का भी उचित समाधान किया ।"
इसी प्रसंग में अधिक स्पष्टीकरण के लिए गौतम ने लोक की स्थिति के बारे में पूछा—''भगवन् ! संसार और पृथ्वी किस पर ठहरी हुई है, इस विषय में विविध कल्पनाएँ प्रचलित हैं, कोई पृथ्वी को शेषनाग पर ठहरी हुई कहता है तो कोई वराह के पृष्ठ पर ठहरी हुई बतलाते हैं । वस्तुस्थिति क्या है, कृपया स्पष्ट कीजिये ।"
महावीर ने कहा - " गौतम ! लोक की स्थिति और व्यवस्था आठ प्रकार की है, जो इस प्रकार है
(१) श्राकाश पर वायु है ।
(२) वायु के आधार पर पानी है ।
(३) पानी पर पृथ्वी टिकी हुई है ।
(४) पृथ्वी के आधार से त्रस -स्थावर जीव हैं ।
(५) अजीव जीव के प्राश्रित हैं ।
(६) जीव कर्म के प्राधार से विविध पर्यायों में प्रतिष्ठित हैं ।
(७) मन भाषा आदि के अजीव पुद्गल जीवों द्वारा संगृहीत हैं । (८) जीव कर्म द्वारा संगृहीत हैं ।
इसको समझाने के लिए भगवान् ने एक दृष्टान्त बतलाया, जैसे किसी मशक को हवा से भरकर मुँह बन्द कर दिया जाय और फिर बीच से बाँधकर मुँह खोल दिया जाय तो ऊपर खाली हो जायेगी । उसमें पानी भरकर मशक खोल दी जाय तो पानी ऊपर ही तैरता रहेगा । इसी प्रकार हवा के आधार पर पानी समझना चाहिये ।
हवा से मशक को भरकर कोई अपनी कमर में बाँधे और जलाशय में घुसे तो वह ऊपर तैरता रहेगा । इसी प्रकार जीव और कर्म का सम्बन्ध भी पानी में गिरी हुई सछिद्र नौका जैसा बतलाया । जिस तरह नौका के बाहर-भीतर पानी है, वैसे ही जीव और पुद्गल परस्पर बँधे हुए हैं ।"
१ (क) यथा नौश्च ह्रदोदकं चान्योन्यावगाहेन वर्तते एवं जीवश्च पुद्गलाश्चेति भावना | - भगवती श०, ११६ | सू० ५५ । टीका |
(ख) भगवती सूत्र, २ ।१ सू० ५५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org