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________________ शालिभद्र का वैराग्य] भगवान् महावीर ६२३ तो वह अपने अलबेलेपन में बोला-"माता ! मेरे पाने की क्या जरूरत है, जो भी मल्य हो, देकर भंडार में रख लो।" इस पर भद्रा बोली--"पूत्र ! कोई किराणा नहीं, यह तो अपना नाथ है, आओ, शीघ्र दर्शन करके चले जाना।" नाथ शब्द सुनते ही शालिभद्र चौंका और सोचने लगा-"अहो, मेरे ऊपर भी कोई नाथ है। अवश्य ही मेरी करणी में कसर है। अब ऐसी करणी करू कि सदा के लिये यह पराधीनता छूट जाय ।" शालिभद्र माता के परामर्शानसार धीरे-धीरे त्याग की साधना करने लगा और इसके लिये उसने प्रतिदिन एक-एक स्त्री छोड़ने की प्रतिज्ञा की। धन्ना सेठ को जब शालिभद्र की बहिन सुभद्रा से पता चला कि उसका भाई एक-एक स्त्री प्रतिदिन छोड़ते हए दीक्षित होना चाहता है, तो उसने कहा, छोड़ना है तो एक-एक क्या छोड़ता है ? यह तो कायरपन है। सुभद्रा अपने भाई की न्यूनताकमजोरी की बात सुनकर बोल उठी-"पतिदेव ! कहना जितना सरल है, उतना करना नहीं।" बस, इतना सुनते ही चाबुक की मार खाये उच्च जातीय अश्व की तरह धन्ना स्नान-पीठ से उठ बैठे। नारियों का अनुनय विनय सब व्यर्थ रहा, उन्होंने तत्काल जाकर शालिभद्र को साथ लिया और साला-बहनोई दोनों भगवान के चरणों में दीक्षित हो गये । विभिन्न प्रकार की तप:साधना करते हए अन्त में दोनों ने वैभार गिरि' पर अनशन करके काल प्राप्त किया और सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न हुए।' इस प्रकार सहस्रों नर-नारियों को चारित्र-धर्म की शिक्षा-दीक्षा देते हुए प्रभु ने इस वर्ष का वर्षावास राजगृह में पूर्ण किया। केवलोचर्या का पंचम वर्ष राजगृह का वर्षाकाल पूर्ण कर भगवान् ने चम्पा की ओर विहार किया और 'पूर्णभद्र यक्षायतन' में विराजमान हुए । भगवान् के आगमन की बात सुन कर नगर का अधिपति महाराज 'दत्त' सपरिवार वन्दन को प्राया। भगवान् की अमोघ देशना सुनकर राजकुमार 'महाचन्द्र' प्रतिबद्ध' हुआ। उसने प्रथम श्रावकधर्म ग्रहण किया और कुछ काल पश्चात् भगवान् के पुनः पधारने पर राज-ऋद्धि और पाँच सौ रानियों को त्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। संकटकाल में भी कल्परक्षार्थ कल्पनीय तक का परित्याग कुछ समय के पश्चात् भगवान् चम्पा से 'वीतभया' नगरी की पोर पधारे । वहाँ का राजा 'उद्रायण' जो व्रती श्रावक था, पौषधशाला में बैठकर १ त्रि० श०, १०प० १० स०, श्लो० १४६ से १८१। २ विपाक सू०, २ श्रु० ६ अध्याय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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