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________________ ६२२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भगवान् का विहार और उपकार भगवान् के युक्तियुक्त उत्तरों से संतुष्ट होकर उपासिका जयन्ती ने भी संयम-ग्रहण कर प्रात्म-कल्यारण कर लिया।' भगवान् का विहार और उपकार कोशाम्बी से विहार कर भगवान श्रावस्ती आए। यहाँ 'सूमनोभद्र' और 'सुप्रतिष्ठ' ने दीक्षा ग्रहण की। वर्षों संयम का पालन कर अन्त समय में 'सुमनोभद्र' ने 'राजग्रह' के विपुलाचल पर अनशनपूर्वक मुक्ति प्राप्ति की। इसी प्रकार सुप्रतिष्ठित मुनि ने भी सत्ताईस वर्ष संयम का पालन कर विपुलगिरि पर सिद्धि प्राप्त की। तदनन्तर विचरते हुए प्रभु 'वारिणयगाँव' पधारे और 'मानन्द' गाथापति को प्रतिबोध देकर उन्हें श्रावक-धर्म में दीक्षित किया। फिर इस वर्ष का वर्षावास 'वाणियग्राम' में ही पूर्ण किया । केवलीचर्या का चतुर्थ वर्ष वर्षाकाल पूर्ण होने पर भगवान् ने वाणियग्राम से मगध की ओर विहार किया। ग्रामानुग्राम उपदेश करते हुए प्रभु राजगृह के 'गुण शील' चैत्य में पधारे। प्रभ ने वहां के जिज्ञासुजनों को शालि आदि धान्यों को योनि एवं उनकी स्थिति-अवधि का परिचय दिया। वहाँ के प्रमुख श्रेष्ठी 'गोभद्र' के पुत्र शालिभद्र ने भगवान् का उपदेश सुनकर ३२ रमरिणयों और भव्य भोगों को छोड़कर दीक्षा ग्रहण को। शालिभद्र का वैराग्य कहा जाता है कि शालिभद्र के पिता 'गोभद्र', जो प्रभु के पास दीक्षित होकर देवलोकवासी हुए थे वे स्नेहवश स्वर्ग से शालिभद्र और अपनी पुत्रवधुनों को नित नये वस्त्राभूषण एवं भोजन पहुंचाया करते थे । शालिभद्र की माता भद्रा भी इतनी उदारमना थी कि व्यापारी से जिन रत्न-कम्बलों को राजा श्रेणिक भी नहीं खरीद सके, नगरी का गौरव रखने हेतु वे सारी रत्न-कम्बलें उन्होंने खरीद ली और उनके टुकड़े कर, वधुओं को पैर पोंछने को दे दिये । भद्रा के वैभव और प्रौदार्य से महाराज श्रेणिक भी दंग थे। शालिभद्र के घर का प्रामन्त्रण पाकर जब राजा वहाँ पहुँचा, तो उसके ऐश्वर्य को देखकर चकित हो गया । राज-दर्शन के लिये भद्रा ने जब शालिभद्र कुमार को बुलाया १ भग., श. १२, उ. २, सू. ४३ । २ अंत० प्रणुतरो, एन. वी. वैच सम्पादित । ३ त्रि.. पु०, १९५०, १० स०, ८४ श्लो. (ब) उ० माला, या० २० भरतेश्वर बाहुबलिवृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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