________________
जयंती के धार्मिक प्रश्न
भगवान् महावीर
"क्या सब भव-सिद्धिक मोक्ष जाने वाले हैं ?" यह तीसरा प्रश्न जयंती ने किया ।
भगवान् ने उत्तर में कहा-हाँ, भव-सिद्धिक सब मोक्ष जाने वाले हैं।"
जयन्ती ने चौथा प्रश्न किया- "भगवन् ! यदि सब भव-सिद्धिक जीवों की मुक्ति होना माना जाय तो क्या संसार कभी भव्य जीवों से खाली, शून्य हो जायेगा?"
इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया-"जयंती ! नहीं, जैसे सर्व प्राकाश की श्रेणी जो अन्य श्रेणियों से घिरी हो, एक परमाणु जितना खंड प्रति समय निकालते हुए अनन्त काल में भी खाली नहीं होती, वैसे ही भव-सिद्धिक जीवों में से निरन्तर मुक्त होते रहें, तब भी संसार के भव्य कभी खत्म नहीं होंगे, वे अनन्त हैं।"
. टीकाकार ने एक अन्य उदाहरण भी यहाँ दिया है। यथा-मिट्टी में घड़े बनने की और अच्छे पाषाण में मूर्ति बनने की योग्यता है, फिर भी कभी ऐसा नहीं हो सकता कि सबके घड़े और मूर्तियां बन जायं और पीछे वैसी मिट्टी और पाषाण न रहें । बीज में पकने की योग्यता है फिर भी कभी ऐसा नहीं होता कि कोई भी बीज सीझे बिना न रहे। वैसा ही भव्यों के बारे में भी समझना चाहिए।
जयन्ती ने जीवन से सम्बन्धित कुछ और प्रश्न किये जो इस प्रकार हैं :"भगवन् ! जीव सोता हुआ अच्छा या जगता हुआ अच्छा?"
इस पर भगवान् ने कहा-"कुछ जीव सोये हुए अच्छे और कुछ जागते अच्छे । जो लोग अधर्म के प्रेमी, अधर्म के प्रचारक और अधर्माचरण में ही रँगे रहते हैं, उनका सोया रहना अच्छा । वे सोने की स्थिति में बहुत से प्राणभूत जीव और सत्वों के लिए शोक एवं परिताप के कारण नहीं बनते । उनके द्वारा स्व-पर की अधर्मवत्ति नहीं बढ़ पाती, अतः उनका सोना ही अच्छा है। किन्तु जो जीव धार्मिक, धर्मानुसारी और धर्मयुक्त विचार, प्रचार एवं प्राचार में रत रहने वाले हैं, उनका जगना अच्छा है । ऐसे लोग जगते हुए किसी के दुःख और परिताप के कारण नहीं होते। उनका जगना स्व-पर को सत्कार्य में लगाने का कारण होता है ।"
इसी प्रकार सबल-निर्बल और दक्ष एवं आलसी के प्रश्नों पर भी अधिकारी भेद से अच्छा और बुरा बताया गया। इससे प्रमाणित हुआ कि शक्ति, सम्पत्ति और साधनों का अच्छापन एवं बुरापन सदुपयोग और दुरुपयोग पर निर्भर है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org