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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [केवलीचर्या का तृतीय वर्ष तपःकर्मों से प्रात्मा को भावित करते हुए विचरने लगे ।' राजकुमार जमालि की पत्नी प्रियदर्शना ने भी एक हजार स्त्रियों के साथ दीक्षा ग्रहण की। इस प्रकार जन-गरण का विविध उपकार करते हुए भगवान ने इस वर्ष का वर्षाकाल वैशाली में पूरण किया।
केवलीचर्या का तृतीय वर्ष वैशाली से विहार कर भगवान् वत्सदेश की राजधानी 'कौशाम्बी' पधारे और 'चन्द्रावतरण' चैत्य में विराजमान हए । कोशाम्बी में राजा सहस्रानीक का पौत्र और शतानीक तथा वैशाली के गण-राज चेटक की पुत्री मृगावती का पुत्र 'उदयन' राज्य करता था। यहाँ उदयन की बम एवं शतानीक की बहिन जयंती श्रमणोपासिका थीं। भगवान के पधारने की बात सुन कर 'मगावती' राजा उदयन और जयंती के साथ भगवान् को वन्दना करने गयी। जयंती श्राविका ने प्रभ की देशना सुनकर भगवान से कई प्रश्नोत्तर किये, जो पाठकों के लाभार्थ यहाँ प्रस्तुत किये जाते हैं । जयंती विवाहिता थी या अविवाहिता-साधार विचार ।
जयंती के धार्मिक प्रश्न जयन्ती ने पूछा--"भगवन् ! जीव हल्का कैसे होता और भारी कैसे होता है ? उत्तर में प्रभु ने कहा-'जयंती ! अठारह पाप--(१) हिंसा, (२) मृषावाद-झूठ, (३) अदत्तादान, (४) मैथुन, (५) परिग्रह, (६) क्रोध, (७) मान, (८) माया, (६) लोभ, (१०) राग, (११) द्वेष, (१२) कलह, (१३) अभ्याख्यान, (१४) पैशुन्य, (१५) पर परवाद-निन्दा, (१६) रतिअरति, (१७) माया-मषा कपटपूर्वक झठ और (१८) मिथ्यादर्शन शल्य के सेवन से जीव भारी होता है तथा चतुर्गतिक संसार में भ्रमण करता है और इन प्राणातिपात आदि १८ पापों को विरति-निवृत्ति से ही जीव संसार को घटाता है, अर्थात् हल्का होकर संसार-सागर को पार करता है।"
"भगवन् ! भव्यपन अर्थात मोक्ष की योग्यता, जीव में स्वभावतः होती है या परिणाम से ?" जयंती ने दूसरा प्रश्न पूछा।
भगवान ने इसके उत्तर में कहा-"मोक्ष पाने की योग्यता स्वभाव से होती है, परिणाम से नहीं।" १ भ., श. ६, उ. ३३, सू. ३८४ २ भगवती-श. ६, ३१६
(क) त्रिष., १०८ श्लो. ३९ (ख) महावीर च., २ प्र. प. २६२
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