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________________ केवलीचर्या का द्वितीय वर्ष] भगवान् महावीर ६१६ पूर्ण नहीं होने के कारण नंदिषेण नहीं उठे। कुछ देर बाद वेश्या स्वयं पायी प्रोर भोजन के लिये प्राग्रहपूर्वक कहने लगी। पर नन्दिषेण ने कहा- "दसवाँ तैयार नहीं हुआ, तो अब मैं ही दसवाँ होता है।" ऐसा कह कर वे वेश्यालय से बाहर निकल पड़े और भगवच्चरणों में पुनः दीक्षा ले कर विशुद्ध रूप से संयमसाधना में तत्पर हो गये ।। इस प्रकार अनेक भव्य-जीवों का कल्याण करते हुए प्रभु ने तेरहवाँ वर्षाकाल राजगृह में ही पूर्ण किया। केवलीचर्या का द्वितीय वर्ष राजगृही में वर्षाकाल पूर्ण कर ग्रामानुग्राम विचरते हुए प्रभु ने विदेह की पोर प्रस्थान किया। वे 'ब्राह्मण कुण्ड' पहुँचे और पास में 'बहुशाल' चैत्य में विराजमान हुए । भगवान् के आने का शुभ समाचार सुन कर पण्डित ऋषभदत्त देवानन्दा ब्राह्मणी के साथ वन्दनार्थ समवसरण की अोर प्रस्थित हुया और पाँच नियमों के साथ भगवान् की सेवा में पहुंचा। ऋषभदत्त और देवानन्दा को प्रतिबोध भगवान को देखते ही देवानन्दा का मन पूर्वस्नेह से भर पाया । वह प्रानन्दमग्न एवं पुलकित हो गई। उसके स्तनों से दूध की धारा निकल पड़ी। नेत्र हथि से डब-डबा आये । गौतम के पूछने पर भगवान् ने कहा- "यह मेरी माता हैं, पुत्र-स्नेह के कारण इसे रोमाञ्च हो उठा है।"२ भगवान की वाणी सुन कर ऋषभदत्त और देवानन्दा ने भी प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की और दोनों ने ११ अंगों का अध्ययन किया एवं विचित्र प्रकार के तप, व्रतों से वर्षों तक संयम की साधना कर मुक्ति प्राप्त की। राजकुमार जमालि को दीक्षा ब्राह्मणकुण्ड के पश्चिम में क्षत्रियकुण्ड नगर था। वहाँ के राजकुमार जमालि ने भी भगवान् के चरणों में उपस्थित पाँच सौ क्षत्रिय-कुमारों के साथ दीक्षा ग्रहण की और ग्यारह अंगों का अध्ययन कर वे विविध प्रकार के १ त्रिषष्टि श० पु० च०, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक ४०८ से ४३६ । २ गोयमा ! देवाणंदा माहणी ममं अम्मगा, अहं णं देवाणंदाए माहणीए उत्तए, तए णं सा देवाणंदा माहणी तेणं पुष्वपुत्तसिणेहाणुरागेणं भागयपण्हया जाव समूसवियरोमकूवा [भ., श. ६, अ.. ३३, सू. ३८०] ३ जाव तभट्ठे पासहेत्ता आव सव्वदुक्खप्पहीणे जाव सव्वदुक्खप्पहीणा । [भ., श. ६, उ. ६, सू. ३८२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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