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केवलचर्या का प्रथम वर्ष ]
भगवान् महावीर
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विद्वान् रिचार्ड पिशल ने इसके अनेक प्राचीन रूपों का उल्लेख किया है ।" निशीथ चूरिंग में मगध के अर्द्ध भाग में बोली जाने वाली अठारह देशी भाषात्रों में नियत भाषा को अर्धमागधी कहा है । नवांगी टीकाकार अभयदेव के मतानुसार इस भाषा को अर्धमागधी कहने का कारण यह है कि इसमें कुछ लक्षण मागधी के और कुछ लक्षण प्राकृत के पाये जाते हैं । ४
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तीर्थ स्थापना के पश्चात् पुनः भगवान् 'मध्यमापावा' से राजगृही को पधारे और इस वर्ष का वर्षावास वहीं पूर्ण किया ।
केवल चर्या का प्रथम वष
बहुत
मध्यमपावा से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान् साधु परिवार के साथ 'राजगृह' पधारे । राजगृह में उस समय पार्श्वनाथ की परम्परा के से श्रावक और श्राविकाएँ रहती थीं । भगवान् नगर के बाहर गुणशील चैत्य में विराजे । राजा श्रेणिक को भगवान् के पधारने की सूचना मिली तो वे राजसी शोभा में अपने अधिकारियों, अनुचरों और पुत्रों आदि के साथ भगवान् की वन्दना करने को निकले और विधिपूर्वक वन्दन कर सेवा करने लगे । उपस्थित सभा को लक्ष्य कर प्रभु ने धर्म देशना सुनाई । श्रेणिक ने धर्म सुन कर सम्यक्त्व स्वीकार किया और अभयकुमार आदि ने श्रावक-धर्म ग्रहरण किया । "
१ हेमचन्द्र जोशी द्वारा अनूदित 'प्राकृत भाषाओंों का व्याकरण, पृ० ३३ ।
२ (क) बृहत्कल्प भाष्य १ प्र० की वृत्ति १२३१ में मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाटक, गौड़, विदर्भ प्रादि देशों की भाषात्रों को देशी भाषा कहा है । (ख) उद्योतन सूरि ने कुवलयमाला में, गोल्ल, मगध, कर्णाटक, अन्तरवेदी, कीर, ढबक, सिंधु, मरु, गुर्जर, लाट, मालवा, ताइय ( ताजिक), कोशल, मरहट्ठ भीर मान्ध्र प्रदेशों की भाषाभों का देशी भाषा के रूप से सोदाहरण उल्लेख किया है ।
[ डॉ० जगदीशचन्द्र जैन - प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ४२७ - ४२८ ] ३ मगह विसय भासा, निबद्ध प्रद्धमागहां श्रहवा अट्ठारह देसी भासा यितं श्रद्धमागहं ११, ३६१६ निशीथ चूरिंग
४ (क) व्याख्या प्र० ५।४ सूत्र १६१ की टीका, पृ० २२१ (ख) प्रोपपातिक, सू० ५६ टी०, पृ० १४८
५ (क) एमाइ धम्मकहं सोउं सेरिणय निवाइया भव्वा । संमत' परिपना केई पुरा देस विरयाई ।। १२६४
(ख) श्रुत्वा तां देशना भर्तुः सम्यक्त्वं श्रेणिकोऽश्रयत् श्रावकधर्म त्वभय कुमाराद्याः प्रपेदिरे । ३७६
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[ नेमिचन्द्र कृत महावीर चरियं ]
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[ क्रि० श०, प० १०, स० ६ ]
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