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________________ 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास [पूर्वकालीन स्थिति और कुलकर काल अपना जीवन चलाते थे, उनका जीवन रोग, शोक और वियोग रहित था। जब कल्पवृक्षों से प्राप्त होने वाली भोग्य सामग्री क्षीण होने लगी और मानव की आवश्यकता-पूर्ति नहीं होने लगी तो उनकी सहज शान्ति भंग हो गई, परस्पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होने लगी। तब उन्होंने मिल कर छोटे-छोटे कुलों के रूप में अपनी व्यवस्था बनाई और कुलों की उस व्यवस्था को करनेवाले कुलकर कहलाये । ऐसे मुख्य कुलकरों के नाम इस प्रकार हैं : (१) विमलवाहन, (२) चक्षुष्मान, (३) यशस्वी, (४) अभिचन्द्र, (५) प्रसेनजित, (६) मरुदेव और (७) नाभि ।' कुलकरों की संख्या के संबंध में ग्रन्थकारों में मतभेद है । जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में १५ कुलकरों का उल्लेख है। __ तीसरे बारे में जब पल्योपम का अष्टम भाग शेष रहा, तब क्रमशः सात कुलकर उत्पन्न हुए। प्रथम कुलकर विमलवाहन हुए। किसी समय वन-प्रदेश में घूमते हुए एक मानव युगल को किसी श्वेतवर्ण सुन्दर हाथी ने देखा और पूर्व जन्म के स्नेह से उसको उसने अपनी पीठ पर बिठा लिया, तो लोगों ने उस युगल को गजारूढ़ देख कर सोचा- “यह मनुष्य हम से अधिक शक्तिशाली है।" उज्ज्वल वाहन वाला होने के कारण लोग उसे विमलवाहन कहने लगे। उस समय कल्पवक्षों की कमी होने के परिणामस्वरूप लोगों में परस्पर विवाद होने लगे, जिससे उनकी शान्ति भंग हो गई। उन्होंने मिल कर अपने से (३) त्रुटितांग-वाद्य के समान आमोद-प्रमोद के साधन देने वाले, (४) दीपांग-प्रकाश के लिए दीपक के समान फल देने वाले, (५) ज्योति-अग्नि की तरह ताप-उष्णता देने वाले, (६) चित्रांग-विविध वर्गों के फूल देने वाले, (७) चित्तरस-अनेक प्रकार के रस देने वाले, (८) मणियंग-मणि रत्नादि की तरह चमकदार प्राभूषणों की पूर्ति करने वाले, (६) गेहागार-घर, शाला आदि आकार वाले और (१०) अनग्न-नग्नता दूर करने वाले अर्थात् वल्कल की तरह वस्त्र की पूर्ति करने वाले। इन वृक्षों से यौगलिक मनुष्यों की प्राहार-विहार और निवास आदि की आवश्यकताएं पूर्ण हो जाती थीं, प्रतः इन्हें कल्पवृक्ष की संज्ञा दी है। कोषकारों ने कल्पवृक्ष का अपर नाम सुरतरु भी दिया है। कल्पवृक्ष के लिए साधारण जनों की मान्यता है कि ये मनचाहे पदार्थ देते हैं, इनसे उत्तमोत्तम पक्वान्न और रत्नजटित प्राभूषण आदि जो मांगा जाय, वही मिलता है। पर वस्तुतः ऐसी बात नहीं है। यौगलिकों को शास्त्र में 'पुढवीपुप्फफलाहारा', पृथ्वी, पुष्प और फलमय प्राहार वाले कहां गया है । यदि देवी प्रभाव से कल्पवृक्ष इच्छानुसार वस्तुएं देते तो उनकी दश जातियां नहीं बताई जातीं। हाँ, कल्पवृक्ष को विभिन्न जातियों से तत्कालीन मनुष्यों की सभी आवश्यकताएं पूर्ण हो जाती थीं, इस दृष्टि से उन्हें मनोकामना पूर्ण करने वाला कहा जा सकता है । विशेष स्पष्टीकरण परिशिष्ट में देखें। १ प्रावश्यक नियुक्ति पृ० १५४ गा० १५२ २ प्रावश्यक नियुक्ति पृ० १५३ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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