SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 676
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [प्रथम देशना की प्रथम देशना का परिणाम विरति-ग्रहण की दृष्टि से शून्य रहा, जो कि अभूतपूर्व होने के कारण आश्चर्य माना गया। श्वेताम्बर परम्परा के प्रागम साहित्य में, और शीलांकाचार्य के 'चउवन्न महापुरिस चरिउ' को छोड़कर प्रायः सभी प्रागमेतर साहित्य में भी यह सर्वसम्मत मान्यता दृष्टिगोचर होती है कि भगवान महावीर की प्रथम देशना प्रभाविता परिषद् के समक्ष हुई । उसके परिणामस्वरूप जिस प्रकार भगवान महावीर के पूर्ववर्ती तेईस तीर्थंकरों को प्रथम देशना से प्रभावित होकर अनेक भव्यात्माओं ने सर्वविरति महाव्रत अंगीकार किये, उस प्रकार भगवान् महावीर की प्रथम देशना से एक भी व्यक्ति ने सर्वविरति महाव्रत धारण नहीं किये। इस सन्दर्भ में श्री हेमचन्द्र आदि प्रायः सभी प्राचार्यों का यह अभिमत ध्वनित होता है कि भगवान् की प्रथम देशनों के अवसर पर समवशरण में एक भी भव्य मानव उपस्थित नहीं हो सका था । पर प्राचार्य गुणचन्द्र ने अपने 'महावीर चरियम्' में भगवान महावीर के प्रथम समवशरण की परिषद् को प्रभाविता-परिषद स्वीकार करते हए भी यह स्पष्ट उल्लेख किया है कि उस परिषद् में मनुष्य भी उपस्थित हुए थे। शीलांक जैसे उच्च कोटि के विद्वान् और प्राचीन आचार्य ने अपने 'चउवन्न महापुरिस चरियम्' में 'प्रभाविता-परिषद्' का उल्लेख तक भी नहीं करते हुए 'ऋजुबालुका' नदी के तट पर हुई भगवान् महावीर की प्रथम देशना में ही इन्द्रभति आदि ग्यारह विद्वानों के अपने-अपने शिष्यों सहित उपस्थित होने, उनकी मनोगत शंकाओं का भगवान् द्वारा निवारण करने एवं प्रभचरणों में दीक्षित हो गणधर-पद प्राप्त करने आदि का विवरण दिया है । मध्यमापावा में समवशरण यहां से भगवान् 'मध्यमापावा' पधारे । वहाँ पर 'आर्य सोमिल' द्वारा एक विराट यज्ञ का आयोजन किया जा रहा था जिसमें कि उच्च कोटि के अनेक विद्वान् निमन्त्रित थे। भगवान् ने वहाँ के विहार को बड़ा लाभ का कारण समझा । जब 'जभिय गाँव' से आप पावापुरी पधारे तब देवों ने अशोक वक्ष १ ताहे तिलायनाहो थुव्वन्तो देवनरनरिंदेहिं । सिंहासणे निसीयइ, तित्थपणाम पकाऊण ॥४॥ जइविहु एरिसनाररोण जिणवरो मुणइ जोग्गयारहियं । कप्पोति तहवि साहइ, खणमेत्तं धम्मपरमत्थं ।।५।। [महावीर चरियम् (प्राचार्य गुणचन्द्र), प्रस्ताव ७] २ चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, पृ० २६९ से ३०३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy