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________________ उपसर्ग और सहिष्णुता] भगवान् महावीर शलाका-बेधन से अति वेदना हो रही थी, तदुपरान्त भी वे इस वेदना को पूर्वसंचित कर्म का फल समझ कर, शान्त और प्रसन्न मन से सहते रहे। _ 'छम्मारिण' से विहार कर प्रभु 'मध्यम पावा' पधारे और भिक्षा के लिए 'सिद्धार्थ' नामक वणिक के घर गये । उस समय सिद्धार्थ अपने मित्र 'खरक' वैद्य से बातें कर रहा था । वन्दना के पश्चात् खरक ने भगवान् की मुखाकृति देखते ही समझ लिया कि इनके शरीर में कोई शल्य है और उसको निकालना उसका कर्तव्य है। उसने सिद्धार्थ से कहा और उन दोनों मित्रों ने भगवान से ठहरने की प्रार्थना की किन्तू प्रभ रुके नहीं। वे वहाँ से चल कर गाँव के बाहर उद्यान में आये और ध्यानारूढ़ हो गयं । AmandednanewmaratswYETHA इधर सिद्धार्थ और खरक दवा आदि लेकर उद्यान में पहँचे। उन्होंने भगवान् के शरीर की तेल से खूब मालिश की और फिर संडासी से कानों की शलाकाएँ खींच कर बाहर निकालीं । रुधिरयुक्त शलाका के निकलते ही भगवान् के मुख से एक ऐसी चीख निकली, जिससे कि सारा उद्यान गज उठा । फिर वैद्य खरक ने संरोहण औषधि घाव पर लगा कर प्रभु की वन्दना की और दोनों मित्र घर की ओर चल पड़े। __उपसर्ग और सहिष्णुता कहा जाता है कि दीर्घकाल की तपस्या में भगवान को जो अनेक प्रकार के अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्ग सहने पड़े, उन सबमें कानों से कील निकालने का उपसर्ग सबसे अधिक कष्टप्रद रहा। इस भयंकर उपसर्ग के सामने 'कटपूतना' का शैत्यवर्धक उपसर्ग जघन्य और संगम के कालचक्र का उपसर्ग मध्यम कहा जा सकता है । जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट इन सभी उपसर्गों में भगवान ने समभाव से रहकर महती कर्म-निर्जरा की । आश्चर्य की बात है कि भगवान का पहला उपसर्ग कुर्मार ग्राम में एक ग्वाले से प्रारम्भ हुआ और अन्तिम उपसर्ग भी एक ग्वाले के द्वारा उपस्थित किया गया । .. छद्मस्थकालीन तप छद्मस्थकाल के साधिक साढ़े बारह वर्ष जितने दीर्घकाल में भगवान् महावीर ने केवल तीन सौ उनचास दिन ही आहार ग्रहण किया, शेष सभी दिन निर्जल तपस्या में व्यतीत किये। . कल्पसूत्र के अनुसार श्रमण भगवान् महावीर दीक्षित होकर १२ वर्ष से कुछ अधिक काल तक निर्मोह भाव से साधना में तत्पर रहे । उन्होंने शरीर की १ प्रा० मलय नि०, गा० ५२४ की टीका । पृ० १९८ । २ कल्पसूत्र, ११६ । --Hum..tammana.velmजान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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