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________________ ६०७ उपासिका नन्दा की चिन्ता] भगवान् महावीर उस समय दासियों ने कहा- "देवार्य तो प्रतिदिन ऐसे ही प्राकर लौट जाते हैं।" तब नन्दा ने निश्चय किया कि अवश्य ही भगवान ने कोई अभिग्रह ले रखा होगा । नन्दा ने मन्त्री मुगुप्त के सम्मुख अपनी चिन्ता व्यक्त की और बोली"भगवान महावीर चार महीनों से इस नगर में बिना कुछ लिए ही लौट जाते हैं, फिर आपका प्रधान पद किस काम का और किस काम की प्रापकी बुद्धि, जो आप प्रभु के अभिग्रह का पता भी न लगा सकें ?" सुगुप्त ने आश्वासन दिया कि वह इसके लिए प्रयत्न करेगा। इस प्रसंग पर राजा की प्रतिहारी 'विजया' भी उपस्थित थी, उसने राजभवन में जाकर महारानी मगावती को सूचित किया । रानी मगावती भी इस बात को सुन कर बहुत दुःखी हुई और राजा से बोली-"महाराज ! भगवान् महावीर बिना भिक्षा लिए इस नगर से लौट जाते हैं और अभी तक आप उनके अभिग्रह का पता नहीं लगा सके।" राजा शतानीक ने रानी को आश्वस्त किया और कहा कि शीघ्र ही इसका पता लगाने का यत्न किया जायगा। उसने 'तथ्यवादी' नाम के उपाध्याय से भगवान के अभिग्रह की बात पूछी, मगर वह बता नहीं सका । फिर राजा ने मंत्री सुगप्त से पूछा तो उसने कहा-"राजन् ! अभिग्रह अनेक प्रकार के होते हैं, पर किसके मन में क्या है, यह कहना कठिन है।" उन्होंने साधनों के प्राहार-पानी लेने-देने के नियमों की जानकारी प्रजाजनों को करा दी, किन्तु भगवान् ने फिर भी भिक्षा नहीं ली। भगवान को अभिग्रह धारण किये पांच महीने पच्चीस दिन हो गये थे। संयोगवश एक दिन भिक्षा के लिए प्रभु 'धन्ना' श्रेष्ठी के घर गये, जहाँ राजकुमारी चन्दना तीन दिन की भूखी-प्यासी, सूप में उड़द के बाकले लिए हुए अपने धर्मपिता के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी । सेठानी मूला ने उसको, सिर मुडित कर, हथकड़ी पहनाये तलघर में बन्द कर रखा था । भगवान् को आया देख कर वह प्रसन्न हो उठी। उसका हृदय-कमल खिल गया, किन्तु भगवान् अभिग्रह की पूर्णता में कुछ न्यूनता देख कर वहाँ से लौटने लगे, तो चन्दना के नयनों से नीर बह चला । भगवान् ने अपना अभिग्रह पूरा हुआ जान कर राजकुमारी चन्दना के हाथ से भिक्षा ग्रहण कर ली। चन्दना की हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ टूट कर बहुमूल्य आभूषणों में बदल गईं। प्राकाश में देव-दुन्दुभि बजी, पंच-दिव्य प्रकट हुए। चन्दना का चिन्तातुर चित्त और अपमान-प्रपीड़ित-मलिन मुख सहसा चमक उठा । पाँच महिने पच्चीस दिन के बाद भगवान् का पारणा हुआ । भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न होने पर यही चन्दना भगवान् की प्रथम शिष्या और साध्वी-संघ की प्रथम सदस्या बनी। जनपद में बिहार 'कोशाम्बी' से विहार कर प्रभु सुमंगल, सुछेत्ता, पालक प्रभृति गाँवों में NWARRIAJLAN walaMERI O R Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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