________________
Parbato
जैन धर्म का मौलिक इतिहास [कठोर अभिग्रह शरण लेकर यह यहाँ पाया है। अतः ऐसा न हो कि मेरे छोड़े हुए वज्र से भगवान् को पीड़ा हो जाय । यह सोच कर इन्द्र तीव्र गति से दौड़ा और मुझ से चार अंगुल दूर स्थित वज्र को उसने पकड़ लिया।
भगवान् की चरण-शरण में होने से शकेन्द्र ने चमरेन्द्र को अभय प्रदान किया, और स्वयं प्रभु से क्षमायाचना कर चला गया।
सुन्सुमारपुर से भगवान् ‘भोगपुर', 'नंदिग्राम' होते हुए 'मेढ़ियाग्राम' पधारे । वहाँ ग्वालों ने उन्हें अनेक प्रकार के उपसर्ग दिये।
कठोर अभिग्रह मेंढ़िया ग्राम से भगवान् कोशाम्बी पधारे और पौष कृष्णा प्रतिपदा के दिन उन्होंने एक विकट-अभिग्रह धारण किया, जो इस प्रकार है :
___ "द्रव्य से उडद के बाकले सप के कोने में हों२, क्षेत्र मे देहली के बीच खड़ी हो, काल से भिक्षा समय बीत चुका हो', भाव से राजकुमारी दासी बनी हो, हाथ में हथकड़ी और पैरों में बेड़ी हो, मडित हो, आँखों में माँस'
और तेले की तपस्या किये हए हो, इस प्रकार के व्यक्ति के हाथ से यदि भिक्षा मिले तो लेना, अन्यथा नहीं।""
उपर्यत कठोरतम प्रतिज्ञा को ग्रहण कर महावीर प्रतिदिन भिक्षार्थ कोशाम्बी में पर्यटन करते । वैभव, प्रतिष्ठा और भवन की दृष्टि से उच्च, नीच एवं मध्यम सब प्रकार के कुलों में जाते और भक्तजन भी भिक्षा देने को लालायित रहते, पर कठोर अभिग्रहधारी महावीर बिना कुछ लिए ही उल्टे पैरों लौट
आते । जन-समुदाय इस रहस्य को समझ नहीं पाता कि ये प्रतिदिन भिक्षा के लिए आकर यों ही लौट क्यों जाते हैं । इस तरह भिक्षा के लिए घूमते हुए प्रभु को चार महीने बीत गये, किन्तु अभिग्रह पूर्ण नहीं होने के कारण भिक्षा-ग्रहण का संयोग प्राप्त नहीं हुआ । नगर भर में यह चर्चा फैल गई कि भगवान् इस नगर की भिक्षा ग्रहण करना नहीं चाहते। सर्वत्र प्राश्चर्य प्रकट किया जाने लगा कि आखिर इस नगर में कौनसी ऐसी बुराई या कमी है, जिससे भगवान् बिना कुछ लिए ही लौट जाते हैं।
उपासिका नन्दा को चिन्ता एक दिन भगवान् कोशाम्बी के अमात्य 'सुगुप्त' के घर पधारे । अमात्यपत्नी 'नन्दा' जो कि उपासिका थी, बड़ी श्रद्धा से भिक्षा देने उठी, किन्तु पूर्ववत् महावीर बिना कुछ ग्रहण किये ही लौट गये । नन्दा को इससे बड़ा दुःख हुना। १ भाव. चू,, प्रथम भाग, पृ. ३१६-३१७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org