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उपसर्ग]
भगवान् महावीर
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'बालुका' की अोर विहार किया। भगवान की मेरुतूल्य धीरता और सागरवत गम्भीरता को देख कर संगम लज्जित हुआ। उसे स्वर्ग में जाते लज्जा पाने लगी। इतने पर भी उसका जोश ठंडा नहीं हुआ। उसने पाँच सौ चोरों को मार्ग में खड़ा करके प्रभु को भयभीत करना चाहा। 'बालुका' से भगवान 'सुयोग', 'सुच्छेत्ता', 'मलभ' और हस्तिशीर्ष आदि गाँवों में जहाँ भी पधारे वहाँ संगम अपने उपद्रवी स्वभाव का परिचय देता रहा ।
एक बार भगवान् 'तोसलि गाँव' के उद्यान में ध्यानस्थ विराजमान थे, तब संगम साधु-वेष बना कर गाँव के घरों में सेंध लगाने लगा। लोगों ने चोर समझ कर जब उसको पकड़ा और पीटा तो वह बोला--"मुझे क्यों पीटते हो? मैंने तो गुरु की आज्ञा का पालन किया है। यदि तुम्हें असली चोर को पकड़ना है तो उद्यान में जाओ, जहाँ मेरे गुरु कपट रूप में ध्यान किये खड़े हैं और उनको पकड़ो।" उसकी बात पर विश्वास कर तत्क्षरण लोग उद्यान में पहुँचे और ध्यानस्थ महावीर को पकड़ कर रस्सियों से जकड़ कर गाँव की ओर ले जाने लगे । उस समय 'महाभूतिल' नाम के ऐन्द्रजालिक ने भगवान् को पहचान लिया, क्योंकि उसने पहले 'कुडग्राम' में भगवान महावीर को देखा था। उसने लोगों को समझा कर महावीर को छुड़ाया और कहा--"यह सिद्धार्थ राजा के पूत्र हैं, चोर नहीं।" ऐन्द्रजालिक की बात सुन कर लोगों ने प्रभु से क्षमायाचना की। झूठ बोल कर साधु को चोर कहने वाले संगम को लोग खोजने लगे तो उसका कहीं पता नहीं चला। इस पर लोगों ने समझा कि यह कोई देवकृत उपसर्ग है 13
इसके पश्चात् भगवान् 'मोसलि ग्राम' पधारे। संगम ने वहाँ पर भी उन पर चोरी का आरोप लगाया। भगवान् को पकड़ कर राज्य-सभा में ले जाया गया। वहाँ 'सुमागध' नामक प्रान्ताधिकारी, जो सिद्धार्थ राजा का मित्र था, उसने महावीर को पहचान कर छुड़ा दिया। यहाँ भी संगम लोगों की पकड़ में नहीं पाया और भाग गया। फिर भगवान् लौट कर 'तोसलि' आये और गाँव के बाहर ध्यानावस्थित हो गये । संगम ने यहाँ भी चोरी करके भारी शस्त्रास्त्र महावीर के पास, उन्हें फंसाने की भावना से ला रखे और स्वयं कहीं जाकर सेंध लगाने लगा। पकड़े जाने पर उसने धर्माचार्य का नाम बता कर भगवान् को पकड़वा दिया। अधिकारियों ने उनके पास शस्त्र देखे तो नामी चोर समझ कर फाँसी की सजा सुना दी। ज्योंहीं प्रभु को फांसी के तख्ते पर चढ़ा कर उनकी गर्दन में फंदा डाला और नीचे तख्ती हटाई कि गले का फंदा टूट गया। पुन: फंदा लगाया और वह भी टूट गया । इस प्रकार सात बार फांसी पर चढ़ाने पर
१ मावश्यक चरिण, पृ० ३११ । २ आवश्यक चूरिण, पृ० ३११ । ३ प्रावश्यक चूणि, पृ. ३१२
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