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संगम देव के उपसर्ग] भगवान् महावीर गये । इस प्रकार सोलह दिन के उपवासों में तीनों प्रतिमाओं को ध्यान-साधना भगवान् ने पूर्ण की।
प्रतिमाएं पूर्ण होने पर प्रभ 'मानन्द' गाथापति के यहां पहुंचे । उस समय आनन्द की 'बहुला' दासी रसोईघर के बर्तनों को खाली करने के लिए रात्रि का अवशेष दोषीण अन्न डालने को बाहर आयी थी। उसने स्वामी को देख कर पूछा-"क्या चाहिए महाराज !" महावीर ने हाथ फैलाया तो दासी ने बड़ी श्रद्धा से अवशेष बासी भोजन भगवान् को दे डाला। भगवान् ने निर्दोष जानकर उसी बासी भोजन से सहज भाव से पारणा किया । देवों ने पंच-दिव्य प्रकटाये और दान की महिमा से दासी को दासीत्व से मुक्त कर दिया।'
__संगम देव के उपसर्ग वहाँ से प्रभ ने 'दढ़ भूमि' की ओर प्रयाण किया। नगरी के बाहर 'पढाल' नाम के उद्यान में 'पोलास' नाम का एक चैत्य था। वहां अष्टम तप कर भगवान् ने थोड़ा सा देह को झुकाया और एक पुद्गल पर दृष्टि केन्द्रित कर ध्यानस्थ हो गये। फिर सब इन्द्रियों का गोपन कर दोनों पैरों को संकोच कर हाथ लटकाये, एक रात की पडिमा में स्थित हुए । उस समय देव-देवियों के विशाल समह के बीच सभा में बैठे हए देवराज शक्र ने भगवान को अवधिज्ञान से ध्यानस्थ देख कर नमस्कार किया और बोले-"भगवान् महावीर का धैर्य और साहस इतना अनूठा है कि मानव तो क्या, शक्तिशाली देव और दानव भी उनको साधना से विचलित नहीं कर सकते ।"
सब देवों ने इन्द्र को बात का अनुमोदन किया किन्तु संगम नामक एक देव के गले यह बात नहीं उतरी। उसने सोचा-"शक यों ही झूठी-मूठी प्रशंसा कर रहे हैं। मैं अभी जाकर उनको विचलित कर देता हूँ।" ऐसा सोच कर वह जहाँ भगवान् ध्यानस्थ खड़े थे, वहां पाया। पाते ही उसने एक-से एक बढ़ कर उपसर्गों का जाल बिछा दिया। शरीर के रोम-रोम में वेदना उत्पन्न कर दी। फिर भो जब भगवान् प्रतिकूल उपसगों से किंचिन्मात्र भी चलायमान नहीं हुए तो उसने अनुकूल उपसर्ग प्रारम्भ किये । प्रलोभन के मनमोहक दृश्य उपस्थित किये । गगनमंडल से तरुणी व सुन्दर अप्सराएं उतरी और हाव-भाव आदि करती हुई प्रभु से काम-याचना करने लगीं। पर महावीर पर उनका कोई असर नहीं हुआ, वे सुमेरु की तरह ध्यान में अडोल खड़े रहे ।
संगम ने एक रात में निम्नलिखित बीस भयंकर उपसर्ग उपस्थित किये(१) प्रलयकारी धूल की वर्षा की।
१ प्रावश्यक चूणि, पृ० ३०१ ।
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