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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [अनार्य क्षेत्र के मेघ से मुक्त होने पर भगवान् ने सोचा-"मुझे अभी बहुत से कर्म क्षय करने हैं। यदि परिचित प्रदेश में ही घूमता रहा तो कर्मों का क्षय विलम्ब से होगा । यहाँ कष्ट से बचाने वाले परिचित एवं प्रेमी भी मिलते रहेंगे । अत: मुझे ऐसे अनार्य प्रदेश में विचरण करना चाहिये, जहां मेरा कोई परिचित न हो।" ऐसा सोच कर भगवान् लाढ़ देश की ओर पधारे। लाढ़ या सढ़ देश, जो उस समय पूर्ण अनार्य माना जाता था, उस ओर सामान्यतः मुनियों का विचरण नहीं होता था। कदाचित कोई जाते तो वहाँ के लोग उनकी हीलना-निन्दा करते और कष्ट देते। उस प्रान्त के दो भाग थे-एक वन भूमि और दूसरा शुभ्र भूमि । इनको उत्तर राढ़ और दक्षिण राढ़ के नाम से कहा जाता था। उनके बीच अजय नदी' बहती थी। भगवान् ने उन स्थानों में विहार किया और वहाँ के कठोरतम उपसर्गों को समभाव से सहन किया।
प्रनार्य क्षेत्र के उपसर्ग लाढ़ देश में भगवान् को जो भयंकर उपसर्ग उपस्थित हुए, उनका रोमांचकारी वर्णन प्राचारांग सूत्र में आर्य सुधर्मा ने निम्नरूप से किया है :___ "वहाँ उनको रहने के लिये अनूकूल आवास प्राप्त नहीं हुए। रूखा-सूखा बासी भोजन भी बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता। वहां के कुत्ते दूर से ही भगवान् को देखकर काटने को दौड़ते किन्तु उन कुत्तों को रोकने वाले लोग वहाँ बहुत कम संख्यां में थे। अधिकांश तो ऐसे थे जो छुछुकार कर कुत्तों को काटने के लिये प्रेरित करते । रूक्षभोजी लोग वहाँ लाठी लेकर विचरण करते । पर भगवान् तो निर्भय थे, वे ऐसे दुष्ट स्वभाव वाले प्राणियों पर भी दुर्भाव नहीं करते, क्योंकि उन्होंने शारीरिक ममता को शुद्ध मन से त्याग दिया था। कर्मनिर्जरा का हेतु समझ कर ग्रामकंटकों-दुर्वचनों को सहर्ष सहन करते हुए वे सदा प्रसन्न रहते । वे मन में भी किसी के प्रति हिंसा भाव नहीं लाते ।
जैसे संग्राम में शत्रुओं के तीखे प्रहारों की तनिक भी परवाह किये बिना गजराज आगे बढ़ता जाता है, वैसे ही भगवान् महावीर भी लाढ़ देश के विभिन्न उपसगों को किंचिन्मात्र भी परवाह किये बिना विचरते रहे। वहां उन्हें ठहरने के लिये कभी दूर-दूर तक गाँव भी उपलब्ध नहीं होते । भयंकर अरण्य में ही रात्रिवास करना पड़ता । कभी गांव के निकट पहुंचते ही लोग उन्हें मारने लग जाते और दूसरे गाँव जाने को बाध्य कर देते । अनार्य लोग भगवान पर दण्ड, मुष्टि, भाला, पत्थर तथा ढेलों से प्रहार करते और इस कार्य से प्रसन्न होकर अट्टहास करने लगते। १ पापा० पू०, पृ० २८७ । २ महमूहा देसिए भत्ते, कुमकुरा तत्व हिसिसु निवइंसु । [भाचा. ६।३ पृ० ८३।८४-] । पापा, शासना० १३
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