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________________ ५६० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [साधना का पंचम वर्ष उपस्थित हुई और रक्षक पुरुषों को उन्होंने महावीर का सही परिचय दिया। परिचय प्राप्त कर प्रारक्षकों ने महावीर को मुक्त किया और अपनी भूल के लिए क्षमायाचना की। चौराक से भगवान महावीर पृष्ठ चंपा' पधारे और चतुर्थ वर्षाकाल वहीं बिताया। वर्षाकाल में चार मास का दीर्घ तप और अनेक प्रकार की प्रतिमाओं से ध्यान-मद्रा में कायोत्सर्ग करते रहे । चार मास की तप-समाप्ति के बाद भगवान् ने चम्पा बाहिरिका में पारणा किया। साधना का पंचम वर्ष पृष्ठ चम्पा का वर्षाकाल पूर्ण कर भगवान 'कयंगला' पधारे।' वहाँ 'दरिद्द थेर' नामक पाषंडी के देवल में कायोत्सर्ग-स्थित हो कर रहे । कयंगला से विहार कर भगवान 'सावत्थी' पधारे और नगर के बाहर ध्यानावस्थित हो गये । कड़कड़ाती सर्दी पड़ रही थी, फिर भी गवान उसकी परवाह किये बिना रात भर ध्यान में लीन रहे । गोशालक सर्दी नहीं सह सका और रात भर जाड़े के मारे ठिठता-सिसकता रहा । उधर देवल में धार्मिक उत्सव होने से बहुत से स्त्री-पुरुष मिल कर नृत्य-गान में तल्लीन हो रहे थे। गोशालक ने उपहास करते हुए कहा--"अजी ! यह कैसा धर्म, जिसमें स्त्री और पुरुष साथ-साथ लज्जारहित हो गाते व नाचते हैं ?" ___लोगों ने उसे धर्म-विरोधी समझ कर वहाँ से बाहर धकेल दिया । वह सर्दी में ठिठरते हए बोला-"अरे भाई ! सच बोलना आजकल विपत्ति मोल लेना है । लोगों ने दया कर फिर उसे भीतर बुलाया । पर वह तो आदत से लाचार था । अतः अनर्गल प्रलाप के कारण वह दो-तीन बार बाहर निकाला गया और युवकों के द्वारा पीटा भी गया। तदनन्तर जब जन-समुदाय को यह ज्ञात हुआ कि यह देवार्य महावीर का शिष्य है, तो सोचा कि इसे यहां रहने देने में कोई हानि नहीं है । वद्धों ने जोरजोर से बाजे बजवाने शुरू किये, जिससे उसकी बातें न सुनी जा सके। इस प्रकार रात कुशलता से बीत गई। प्रातःकाल महावीर वहाँ से विहार कर श्रावस्ती नगरी में पधारे । वहाँ पर 'पितदत्त' गाथापति की पत्नी ने अपने बालक की रक्षा के लिए किसी निमितज्ञ के कथन से किसी एक गर्भ के मांस से खीर बनाई और तपस्वी को देने के विचार से गोशालक को दे डाली। उसने भी अनजाने ले ली। सिद्धार्थ ने पहले १ पाव. पू., पृ० २८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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