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नियतिवाद ]
भगवान् महावीर
नियतिवाद
पर गोशालक ग्वालों को सचेत कर स्वयं खीर के लिए रुका रहा । भगवान् प्रागे प्रयाण कर गये । सुरक्षा का पूर्ण प्रयत्न करने पर भी चावलों के फूलने से हँडिया फूट गई और खीर धूल में मिल गई । गोशालक निराश होकर नन्हा सा मुँह लिए महावीर के पास पहुँचा । उसे इस बार दृढ़ विश्वास हो गया कि होनहार कभी टलता नहीं । इस तरह वह 'नियतिवाद' का पक्का समर्थक
बन गया ।
कालान्तर में वहाँ से बिहार कर भगवान् 'ब्राह्मणगाँव' पधारे । ब्राह्मणगाँव दो भागों में विभक्त था - एक 'नन्दपाटक' और दूसरा 'उपनन्दपाटक' । नन्द और उपनन्द नाम के दो प्रसिद्ध पुरुषों के नाम पर गाँव के भाग इन नामों से पुकारे जाते थे । भगवान् महावीर 'नन्दपाटक' में नन्द के घर पर भिक्षा को पधारे । वहाँ उनको दही मिश्रित भात मिला । गोशालक 'उपनन्दपाटक' में उपनन्द के घर गया था वहाँ उपनन्द की दासी उसको बासी भात देने लगी किन्तु गोशालक ने दुर्भाव से उसे अस्वीकार कर दिया। गोशालक के इस अभद्र व्यवहार से क्रुद्ध हो उपनन्द दासी से बोला- “यदि यह भिक्षा नहीं ले तो इसके सिर पर फेंक देना ।" दासी ने स्वामी की ग्राज्ञा से वैसा ही किया । इस घटना से गोशालक बहुत कुपित हुआ और उसके घर वालों को शाप देकर वहाँ से चल दिया !
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आवश्यक चूर्णिकार के मतानुसार गोशालक ने उपनन्द को उसका घर जल जाने का शाप दिया । भगवान् के तप की महिमा असत्य प्रमारित न हो इस दृष्टि से निकटवर्ती व्यन्तरों के द्वारा घर जलाया गया और उसका शाप सच्चा ठहरा । "
ब्राह्मणगाँव से विहार कर भगवान् चम्पा पधारे और वहीं पर तृतीय ... वर्षाकाल पूर्ण किया । वर्षाकाल में दो-दो मास के उत्कट तप के साथ प्रभु ने विविध ग्रासन व ध्यानयोग की साधना की । प्रथम द्विमासीय तप का पारणा चंपा में और द्वितीय द्विमासीय तप का पारणा चंपा के बाहर किया । २
साधना का चतुर्थ वर्ष
अंग देश की चम्पा नगरी से विहार कर भगवान् 'कालाय' सन्निवेश पधारे । वहाँ गोशालक के साथ एक सूने घर में ध्यानावस्थित हुए । गोशालक वहाँ द्वार के पास छिप कर बैठ गया और पास प्रायी हुई 'विद्युन्मती' नाम की १ प्राव० चू० पूर्व भाग, पृ० २६४ वाणमंत रेहि मा भगवतो अलियं भवतुत्ति तं घरं दड्ढ़ 1 २ जं चरिमं दो मासियपाररणयं तं बाहि पारेति । [ श्राव. चू., ११२८४]
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