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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[निमित्तश रा
निमित्तज्ञ द्वारा स्वप्न-फल कथन उस गाँव में उत्पल नाम का एक निमित्तज्ञ रहता था। वह पहले भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का श्रमण था, किन्तु संयोगवश श्रमण-जीवन से च्युत हो गया था। उसने जब भगवान महावीर के यक्षायतन में ठहरने की बात सुनी तो अनिष्ट की आशंका से उसका हृदय हिल उठा।
प्रातःकाल वह भी पुजारी के साथ यक्षायतन में पहुँचा । वहां पर उसने भगवान् को ध्यानावस्था में अविचल खड़े देखा तो उसके आश्चर्य और प्रानन्द की सीमा न रही। उसने रात में देखे हुए स्वप्नों के फल के सम्बन्ध में प्रभु से निम्न विचार व्यक्त किये :
(१) पिशाच को मारने का फल :-आप मोह कर्म का अन्त करेंगे। (२) श्वेत कोकिल-दर्शन का फल :-आपको शुक्लध्यान प्राप्त होगा। (३) विचित्र कोकिल-दर्शन से आप विविध ज्ञान रूप श्रुत की देशना
करेंगे। (४) देदीप्यमान दो रत्नमालाएं देखने के स्वप्न का फल निमितज्ञ नहीं
जान सका। (५) श्वत गौवर्ग देखने से आप चतुर्विध संघ की स्थापना करेंगे। (६) पद्म-सरोवर विकसित देखने से चार प्रकार के देव आपकी सेवा
करेंगे। (७) समुद्र को तैर कर पार करने से आप संसार-सागर को पार
करेंगे।
(८) उदीयमान सूर्य को विश्व में आलोक करते देखा। इससे आप
केवलज्ञान प्राप्त करेंगे। () प्रांतों से मानुषोत्तर पर्वत वेष्टित करने से आपकी कीति सारे
मनुष्य लोक में फैलेगी। (१०) मेरु-पर्वत पर चढ़ने से आप सिंहासनारूढ़ होकर लोक में धर्मो
- पदेश करेंगे।
चौथे स्वप्न का फल निमितज्ञ नहीं जान सका, इसका फल भगवान् ने स्वयं बताया-"दो रत्नमालानों को देखने का फल यह है कि मैं दो प्रकार के धर्म, साधु धर्म और श्रावक धर्म का कथन करूगा।" भगवान् के वचनों को सुनकर निमित्तज्ञ अत्यन्त प्रसन्न हुमा ।
प्रस्थिग्राम के इस वर्षाकाल में फिर भगवान् को किसी प्रकार का उपसर्ग
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