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________________ यश का उपद्रव] भगवान् महावीर ५७७ कलियाए अंतिमराइयंसि इमे दस० छद्मस्थकालिकायां अंतिमरात्री, जिसका अर्थ छद्मस्थकाल की अंतिम रात्रि होता है । सं० भगवती सूत्र के अनुसार छद्मस्थकाल की अंतिम रात्रि में ये दशमहास्वप्न देखना प्रमाणित होता है। जैसा कि सत्र में कहा है-समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिम राइयंसि इमे दस सुमिरणा पासित्तारणं पडिबद्ध ....! मूल आगम की भावना को देखते हुए प्राव० जूणि एवं कल्पसूत्र में कथित उपर्युक्त अस्थिग्राम में प्रभु का स्वप्न-दर्शन मेल नहीं खाता । संभव है, प्राचार्यों ने शूलपाणि के रात भर उवसर्ग के बाद निद्रा की बात लिखते 'छउमत्थ कालि. याए' पाठ ध्यान में नहीं रखा है । ना ऐसी कोई उनके सामने परंपरा है । भग० १६।६ उ० सू० १६ । निद्रा और स्वप्न-दर्शन मुहूर्त भर रात्रि शेष रहते-रहते महावीर को क्षण भर के लिए निद्रा आई । प्रभु के साधनाकाल में यह प्रथम तथा अन्तिम निद्रावस्था थी । इस समय प्रभु ने निम्नलिखित दश स्वप्न देखे : (१) एक ताड़-पिशाच को अपने हाथों पछाड़ते देखा । (२) श्वेत पुस्कोकिल (उनकी) सेवा में उपस्थित हुआ । (३) विचित्र वर्ण वाला पुस्कोकिल सामने देखा । (४) देदीप्यमान दो रत्नमालाएँ देखीं। (५) एक श्वेत गौवर्ग सम्मुख खड़ा देखा । (६) विकसित पद्म-कमल का सरोवर देखा । (७) अपनी भुजाओं से महासमुद्र को तैरते हुए देखा। (८) विश्व को प्रकाशित करते हुए सहस्र-किरण-सूर्य को देखा। (६) वैदूर्य-वर्ण सी अपनी आँतों से मानुषोत्तर पर्वत को वेष्टित करते देखा। (१०) अपने आपको मेरु पर आरोहण करते देखा। स्वप्न-दर्शन के पश्चात् तत्काल भगवान की निद्रा खुल गई, क्योंकि निद्राग्रहण के समय भगवान् खड़े ही थे। उन्होंने निद्रावरोध के लिए निरन्तर योग का मोर्चा लगा रखा था, फिर भी उदय के जोर से क्षरण भर के लिए निद्रा आ ही गई। साधनाकालीन यह प्रथम प्रसंग था, जब क्षण भर भगवान् को नींद पाई। यह भगवान के जीवनकाल की अन्तिम निद्रा थी। १ (क) तत्थ सामी देसूणे चत्तारि जामे अतीव परितावितो, पभायकाले मुहूत्तमेत्तं निद्दापमाय गतो। [प्राव. म. प० २७०।१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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