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में रुंधे-रुके पड़े इतिहास के अजस्र निर्मल स्रोतों की धाराओं को एकत्र प्रवाहित कर कलकल-निनादिनी, उत्ताल-तरंगिणी इतिहास-गंगा को सर्वसाधारण के हृदयों में प्रवाहित कर दे।
जन-जन के अन्तस्तल में उद्भूत हुई भावनाएँ कभी निष्फल नहीं होती। आज जैन समाज के सौभाग्य से एक महान सन्त इतिहास की गंगा प्रवाहित करने के लिए भागीरथ बनकर प्रयास कर रहे हैं। देखिये, आज के इन भागीरथ द्वारा प्रवाहित त्रिवेणी (गंगा-तीर्थंकर काल का इतिहास, यमुना-निर्वाण पश्चात लौंकाशाह तक का इतिहास और सरस्वती-लौंकाशाह से आज दिन तक का इतिहास) की यह पहली गंगाधारा आप ही की ओर बढ़ रही है। जी भर कर अमृत-पान कर इसमें मजन कीजिये और एक साथ बोलिये
अभय प्रदायिनि अघदलदारिणी,
जय, जय, जय इतिहास तरगिणि| पूजनीय आचार्यश्री ने मानव को परमोत्कर्ष पर पहुँचाने एवं जनकल्याण की भावना से ओत-प्रोत हो इस ग्रन्थ के लेखन का जो अत्यन्त श्रमसाध्य कार्य सम्पन्न किया है, उस भावना के अनुरूप ही पाठकगण मानवीय दृष्टिकोण को अपना कर आत्मोन्नति के साथ-साथ सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रीय उन्नति के प्रति अग्रसर होंगे तो आचार्यश्री को परम संतोष प्राप्त होगा।
गजसिंह राठौड़ न्या. व्या. तीर्थ, सिद्धान्त विशारद
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