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विवाह]
भगवान् महावीर
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और अपने मित्रों से कहा-"प्रिय मित्रो! तुम विवाह के लिये जो आग्रह कर रहे हो, वह मोह-वृद्धि का कारण होने से भव-भ्रमण का हेतु है । फिर भोग में रोग का भय भी भुलाने की वस्तु नहीं है। माता-पिता को मेरे वियोग का दुःख न हो, इसलिये दीक्षा लेने हेतु उत्यूक होते हुए भी मैं अब तक दीक्षा नहीं ले रहा हूँ।"
जिस समय वर्द्धमान और उनके मित्रों में परस्पर इस प्रकार की बात हो ही रही थी तभी माता त्रिशलादेवी वहां आ पहुंची । भगवान् ने खड़े होकर माता के प्रति आदर प्रशित किया। माता त्रिशला ने कहा-"वद्ध मान ! मैं जानती हूं कि तुम भोंगों से विरक्त हो, फिर भी हमारी प्रबल इच्छा है कि तुम एक बार योग्य राज-कन्या से पाणिग्रहण करो।"
अन्ततोगत्वा गाता-पिता के अनवरत प्रबल अाग्रह के समक्ष महावीर को झुकना पड़ा और वसतपुर के महासामन्त समरवीर की सर्वगुण सम्पन्ना पुत्री यशोदा' के साथ शुभ-मुहूर्त में उनका पाणिग्रहण सम्पन्न हुआ । संच है, भोगकर्म तीर्थंकर को भी नहीं छोडते।
गर्भकाल में ही माता के स्नेहाधिक्य को देख कर महावीर ने अभिग्रह कर रखा था कि जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे, वे दीक्षा ग्रहण नहीं करेंगे। माता-पिता को प्रसन्न रखने के इस अभिग्रह के कारण ही महावीर का विवाहबन्धन में बंधना पड़ा।
भगवान महावीर के विवाह के सम्बन्ध में कुछ विद्वान शंकाशील हैं। श्वेताम्बर परम्परा के पागम पाचारांग, कल्पसूत्र और आवश्यक नियुक्ति आदि सभी ग्रन्थों में विवाह होने का उल्लेख है। पर दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में यह स्वीकृत नहीं है, पर माता-पिता का विवाह के लिये अत्याग्रह और विभिन्न राजाओं द्वारा अपनी कन्याओं के लिये प्रार्थना एवं जितशत्रु की पुत्री यशोदा के लिये साननय निवेदन उन ग्रन्थों में भी मिलता है। भगवान महावीर विवाहित थे या नहीं, इस शंका का आधार शास्त्र में प्रयुक्त 'कुमार' शब्द है। उसका सही अर्थ समझ लेने पर समस्या का सरलता से समाधान हो सकता है । दोनों परम्पराओं में वासुपूज्य, मल्ली, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर इन पांच तीर्थंकरों को 'कुमार प्रवजित' कहा है। कुमार का अर्थ प्रकृत-राज्य और
१ उम्मुक्त बालभावो कमेण अह जोव्वणं अणुपत्तो ।
भागसमत्यं गाउं, अम्मापियरो उ वीरस्स । ७८ तिहि रिक्खम्मि पसत्थे, महन्त सामंत कुलप्पसूयाए। कारेन्ति पाणिग्गहणं, जसोयवर रायकण्णाए । ७६
[प्रा० नि० भा०, पृ० २५६]
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