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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[ यशोदा से
जन्म-जन्मान्तर की करणी से संचित होता है । उनका शारीरिक संहनन वज्रऋषभनाराच' और संस्थान समचतुरस्र होता है ।
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महावीर और कलाचार्य
महावीर जब आठ वर्ष के हुए तब माता-पिता ने शुभ मुहूर्त देख कर उनको अध्ययन के लिये कलाचार्य के पास भेजा । माता-पिता को उनके जन्मसिद्ध तीन ज्ञान और अलौकिक प्रतिभा का परिज्ञान नहीं था । उन्होंने परम्परानुसार पण्डित को प्रथम श्रीफल आदि भेंट किये श्रौर वर्द्धमान कुमार को सामने खड़ा किया | जब देवेन्द्र को पता चला कि महावीर को कलाचार्य के पास ले जाया जा रहा है तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि तीन ज्ञानधारी को अल्पज्ञानी पंडित क्या पढ़ायेगा |
उसी समय वे निमेषार्ध में विद्या - गुरु और जनसाधारण को प्रभु की योग्यता का ज्ञान कराने के लिये एक वृद्ध ब्राह्मरण के रूप में वहाँ प्रकट हुए और महावीर से व्याकरण सम्बन्धी अनेक जटिल प्रश्न पूछने लगे । महावीर द्वारा दिये गये युक्तिपूर्ण यथार्थ उत्तरों को सुन कर कलाचार्य सहित सभी उपस्थित जन चकित हो गये । पंडित ने भी अपनी कुछ शंकाएँ बालक महावीर के सामने रखी और उनका सम्यक् समाधान पा कर वह अवाक् रह गया ।
जब पंडित बालक वर्द्ध मान की ओर साश्चर्य देखने लगा तो वृद्ध ब्राह्मण रूपधारी इन्द्र ने कहा - " पंडितजी ! यह साधारण बालक नहीं, विद्या का सागर और सकल शास्त्रों का पारंगत महापुरुष है ।" जातिस्मरण और जन्म से तीन ज्ञान होने के कारण ये सब विद्याएं जानते हैं । वृद्ध ब्राह्मण ने महावीर के तत्काल प्रश्नोत्तरों का संग्रह कर 'ऐन्द्र व्याकरण' की रचना की । '
महाराज सिद्धार्थ और माता त्रिशला महावीर की इस असाधारण योग्यता को देख कर परम प्रसन्न हुए और बोले - "हमें पता नहीं या कि हमारा कुमार इस प्रकार का 'गुरूणां गुरु: है ।”
यशोदा से विवाह
बाल्यकाल पूर्ण कर जब वर्द्धमान युवावस्था में आये तब राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला ने वर्द्धमान महावीर के मित्रों के माध्यम से उनके सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा । राजकुमार महावीर भोग- जीवन जीना नहीं चाहते थे क्योंकि वे सहज-विरक्त थे । अतः पहले तो उन्होंने इस प्रस्ताव का विरोध किया
१ अन्नया अधित ट्ठवासजाते
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"तप्पभिति च गं ऐद्रं व्याकरणं संवृत्त,
[ श्रावश्यक चूरिंग, भाग १, पृ० २४८ ]
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