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महावीर के माता पिता] भगवान् महावीर
५५६ शास्त्रों में आये हुए सिद्धार्थ के साथ 'क्षत्रिय' शब्द के प्रयोग से सिद्धार्थ को क्षत्रिय सरदार मानना ठीक नहीं, क्योंकि कल्पसूत्र में "तएणं से सिद्धत्थे राया" आदि रूप से उसको राजा भी कहा गया है । इतना ही नहीं, उनके बारे में बताया गया है कि वे मुकुट, कुण्डल आदि से विभूषित "नरेन्द्र" थे। "महावीर चरित्र" में भी "सिद्धत्थो य नरिंदो" ऐसा उल्लेख मिलता है। प्राचीन साहित्य अथवा लोक व्यवहार में नरेन्द्र शब्द का प्रयोग साधारण सरदार या उमराव के लिए न होकर राजा के लिए ही होता आया है। साथ ही सिद्धार्थ के साथ गणनायक आदि राजकीय अधिकारियों का होना भी शास्त्रों में उल्लिखित है । निश्चित रूप से इस प्रकार के अधिकारी किसी राजा के साथ ही हो सकते हैं।
दूसरी बात क्षत्रिय का अर्थ गण-कर्म विभाग से तथाकथित वर्ण-व्यवस्था के अन्तर्गत आने वाली युद्धप्रिय क्षत्रिय जाति नहीं, अपितु राजा भी होता है । जैसे कि अभिधान चिन्तामणि में लिखा है :-क्षत्रं तु क्षत्रियो राजा, राजन्यो बाहुसंभवः' ।।
महाकवि कालिदास ने भी रघुवंश महाकाव्य में राजा दिलीप के लिए, जो क्षत्रिय कुलोद्भव थे, लिखा है :
'क्षतात किल त्रायत इत्युदन:, क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढः ।'
वस्तुतः विपत्ति से बचाने वाले के लिए रूढ "क्षत्रिय' शब्द राजा का भी पर्यायवाची हो सकता है, केवल साधारण क्षत्रिय का नहीं:
डॉ० हार्नेल और जैकोबी ने सिद्धार्थ को राजा मानने में जो आपत्ति की है, उसका एकमात्र कारण यही दिखाई देता है कि वैशाली के चेटक जैसे प्रमख राजाओं की तरह उस समय उनका विशिष्ट स्थान नहीं था, फिर भी राजा तो वे थे ही । बड़े या छोटे जो भी हों, सिद्धार्थ उन सभी सुख-साधनों से सम्पन्न थे जो कि एक राजा के रूप में किसी को प्राप्त हो सकते हैं। इस तरह सिद्धार्थ को राजा मानना उचित ही है, इसमें किसी प्रकार की कोई बाधा दिखाई नहीं देती।
सिद्धार्थ की तरह त्रिशला के साथ भी क्षत्रियाणी शब्द देख कर इस प्रकार उठने वाली शंका का समाधान उपयुक्त प्रमाण से हो जाता है। वैशाली जैसे शक्तिशाली राज्य की राजकुमारी और उस समय के महान प्रतापी राजा चेटक की सहोदरा त्रिशला का किसी साधारण क्षत्रिय से विवाह कर १ अभिधान चिन्तामणि, काण्ड ३, श्लो० ५२७
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