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आदि सामग्री तैयार की है, वह इतनी विपुल मात्रा में है कि यदि उसमें से सम्पूर्ण महत्त्वपूर्ण सामग्री को प्रकाशनार्थ लिया जाता तो तीर्थंकरकाल के ही प्रस्तुत ग्रन्थ के समान आकार वाले अनेक भाग तैयार हो जाते अतः अतीव संक्षिप्त रूप में प्रमुख ऐतिहासिक सामग्री को ही इस ग्रन्थ में स्थान दिया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के आद्योपान्त सम्यक अध्ययन से धर्म एवं इतिहास के विज्ञ पाठकों को विदित होगा कि आचार्यश्री ने भारतीय इतिहास को अनेक नवीन उपलब्धियों से समृद्ध, सुन्दर और अलंकृत किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ के कालचक्र, कुलकर तुलनात्मक विश्लेषण, धर्मानुकूल लोक-व्यवस्था, श्वेताम्बर 'दिगम्बर परम्पराओं की तुलना, भगवान् ऋषभदेव और भरत का जैनेतर पुराणादि में उल्लेख, हरिवंश की उत्पत्ति, उपरिचर वसु (पूरा उपाख्यान), वसुदेव-सम्मोहक व्यक्तित्व, उस समय की राजनीति, अरिष्टनेमि का शौर्य-प्रदर्शन, अरिष्टनेमि द्वारा अद्भुत रहस्य का उद्घाटन, क्षमामूर्ति गज सुकुमाल, वैदिक साहित्य में अरिष्टनेमि और उनका वंशवर्णन, भगवान पार्श्वनाथ का व्यापक और अमिट प्रभाव, आर्य केशिश्रमण, गोशालक का परिचय, कुतर्कपूर्ण भ्रम, कालचक्र का वर्णन, एक बहुत बड़ा भ्रम, भगवान महावीर की प्रथम शिष्या, महाशिलाकंटक युद्ध, रथमूसल संग्राम, ऐतिहासिक दृष्टि के निर्वाणकाल तथा भगवान महावीर और बुद्ध के निर्वाण का ऐतिहासिक विश्लेषण आदि शीर्षकों में आचार्यश्री की ललित लेखन-कला के अद्भुत चमत्कार के साथ-साथ आचार्यश्री के विराट स्वरूप, महान व्यक्तित्व, अनुपम चहुंमुखी प्रतिभा, प्रकाण्ड पाण्डित्य और अधिकारिकता के दर्शन होते हैं।
. प्रस्तुत ग्रन्थ मूल आगमों, चूर्णियों वृत्तियों और प्रामाणिक प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है। इस ग्रन्थ में वर्णित प्रायः सभी तथ्य धर्म एवं इतिहास के मूल ग्रन्थों से लिये गये हैं एवं जैन धर्म का इतिहास इसके प्रारम्भिक मूलकाल से लिखा गया है अतः इसका नाम "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" रखा गया है। तीर्थंकरों को धर्म-परिषद् के लिए आदि के स्थलों में समवसरण
और आगे के स्थलों में समवशरण लिखा गया है। विद्वान् दिगम्बर मुनिश्री ज्ञानसागरजी ने अपने 'वीरोदय काव्य' के अधोलिखित श्लोक मेंसमवशरणमेतन्नामतो विश्रुतासी
जिनपतिपदपूता संसदेषा सुभाशीः । जनिमरणदुःखादुखितो जीवराशि
रिह समुपगतः सन् संभवेदाशु काशीः ॥
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