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त्रिशला के यहाँ]
भगवान् महावीर
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___ "एक अमेरिकन डॉक्टर को एक भाटिया-स्त्री के पेट का ऑपरेशन करना था । वह गर्भवती थी, अत: डॉक्टर ने एक गभिरणी बकरी का पेट चीर कर उसके पेट का बच्चा बिजली की शक्ति से युक्त एक डिब्बे में रखा और उस औरत के पेट का बच्चा निकाल कर बकरी के गर्भ में डाल दिया । औरत का ऑपरेशन कर नुकने के बाद डॉक्टर ने पुनः औरत का बच्चा औरत के पेट में रख दिया और बकरी का बच्चा बकरी के पेट में रख दिया। कालान्तर में बकरी और स्त्री ने जिन बच्चों को जन्म दिया वे स्वस्थ और स्वाभाविक रहे ।"
'नवनीत की तरह अन्य पत्रों में भी इस प्रकार के अनेक वृत्तान्त प्रकाशित हुए हैं, जिनसे गर्भापहरण की बात संभव और साधारण सी प्रतीत होती है ।
त्रिशला के यहाँ जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, जिस समय हरिणंगमेषी देव ने इन्द्र की प्राज्ञा से महावीर का देवानन्दा की कुक्षि से त्रिशला की कुक्षि में साहरण किया, उस समय वर्षाकाल के तीसरे मास अर्थात् पाँचवें पक्ष का आश्विन कृष्णा त्रयोदशी का दिन था । देवानन्दा के गर्भ में बयासी (८२) रात्रियाँ विता चुकने के पश्चात् तियासीवीं रात्रि में चन्द्र के उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ योग के समय भगवान् महावीरं का देवानन्दा की कुक्षि से त्रिशलादेवी की कुक्षि में साहरण किया गया।
गर्भसाहरण के पश्चात् देवानन्दा यह स्वप्न देखकर कि उसके चौदह मंगलकारी शुभस्वप्न उसके मुखमार्ग से बाहर निकल गये हैं, तत्क्षरण जाग उठी। वह शोकाकुल हो बारम्बार विलाप करने लगी कि किसी ने उसके गर्भ का अपहरण कर लिया है।
उधर त्रिशला रानी को उसी रात उन चौदह महामंगलप्रद शुभस्वप्नों के दर्शन हुए । वह जागृत हो महाराज सिद्धार्थ के पास गई और उसने अपने स्वप्न सुनाकर बड़ी मृदु-मंजुल वाणी में उनसे स्वप्नफल की पच्छा की।
__ महाराज सिद्धार्थ ने निमित्त-शास्त्रियों को ससम्मान बुलाकर उनसे उन चौदह स्वप्नों का फल पूछा ।
निमित्तज्ञों ने शास्त्र के प्रमारणों से बताया-"इस प्रकार के मांगलिक शुभस्वप्नों में से तीर्थंकर अथवा चक्रवर्ती की माता चौदह महास्वप्न देखती है । वासुदेव की माता सात महास्वप्न, बलदेव की माता चार महास्वप्न तथा १ (क) महावीर चरित्रम् (गुणचन्द्र सूरि), पत्र २१२ (२) । (ख) त्रिषष्टि भलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग २, श्लोक २७ मोर २८ ।
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