________________
५४८
___ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [गर्भापहार प्राश्चर्य है का वियोग होने से 'हरि' को अधिकारियों द्वारा राजा बना दिया गया। कुसंगति के कारण दोनों ही दुर्व्यसनी हो गये और फलतः दोनों मरकर नरक में उत्पन्न हुए। इस युगल से हरिवंश की उत्पत्ति हुई।
युगलिक नरक में नहीं जाते पर ये दोनों हरि और हरिणी नरक में गये । यह पाश्चर्य की बात है।
८. चमर का उत्पात :-पूरण तापस का जीव असुरेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ । इन्द्र बनने के पश्चात् उसने अपने ऊपर शकेन्द्र को सिंहासन पर दिव्यभोगों का उपभोग करते हुए देखा और उसके मन में विचार हुआ कि इसकी शोभा को नष्ट करना चाहिए । भगवान् महावीर की शरण लेकर उसने सौधर्म देवलोक में उत्पात मचाया। इस पर शकेन्द्र ने क्रुद्ध हो उस पर वज्र फेंका। चमरेन्द्र भगभीत हो भगवान् के चरणों में गिरा । शक्रेन्द्र भी चमरेन्द्र को भगवान् महावीर की चरण-शरण में जानकर बड़े वेग से वज के पीछे पाया और अपने फेंके हुए वज़ को पकड़ कर उसने चमर को क्षमा प्रदान कर दो।
चमरेन्द्र का इस प्रकार अरिहंत की शरण लेकर सौधर्म देवलोक में जाना पाश्चर्य है।
६. उत्कृष्ट प्रवगाहना के १०८ सिद्ध :-भगवान् ऋषभदेव के समय में ५०० धनष की प्रवगाहना वाले १०८ सिद्ध हुए। नियमानुसार उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो' ही एक साथ सिद्ध होने चाहिये, पर ऋषभदेव और उनके पुत्र
आदि १०८ एक समय में साथ सिद्ध हुए, यह आश्चर्य की बात है। . १०. प्रसंयत पूजा :-संयत ही वंदनीय-पूजनीय होते हैं, पर नौवें तीर्थकर सुविधिनाथ के शासन में श्रमण-श्रमणी के प्रभाव में असंयति की ही पूजा हुई. प्रतः यह माश्चर्य माना गया है।
वंज्ञानिक दृष्टि से गर्मापहार भारतीय साहित्य में वरिणत गर्भापहार जैसी कितनी ही बातों को लोग अब तक अविश्वसनीय मानते रहे हैं, पर विज्ञान के अन्वेषण ने उनमें से बहुत कुछ प्रत्यक्ष कर दिखाया है । गुजरात वर्नाक्यूलर सोसायटी द्वारा प्रकाशित "जीवन विज्ञान" (पृष्ठ ४३) में एक पाश्चर्यजनक घटना प्रकाशित की गई है, जो इस प्रकार है:१ उक्कोसोगाहणाए म सिजते जुग दुवे। उ०३६, गा० ५४ २ रिसहो रिसहस्स सुया, भरहेण विवज्जिया नवनवई । पठेव भरहस्स सुया, सिद्विगया एग समम्मि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org