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पाश्चर्य है]
भगवान् महावीर
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हैं। किन्तु भगवान महावीर की प्रथम देशना में किसी ने चारित्र स्वीकार नहीं किया, वह परिषद् अभावित रही, यह प्राश्चर्य है।
५. कृष्ण का अमरकंका गमन :-द्रौपदी की गवेषणा के लिए श्रीकृष्ण धातकीखण्ड की अमरकंका नगरी में गये और वहाँ के कपिल वासुदेव के साथ शंखनाद से उत्तर-प्रत्युत्तर हुमा । साधारणतया चक्रवर्ती एवं वासुदेव अपनी सीमा से बाहर नहीं जाते, पर कृष्ण गये, यह पाश्चर्य की बात है।
६. चन्द्र-सूर्य का उतरना :-सूर्य चन्द्रादि देव भगवान् के दर्शन को प्राते हैं, पर मूल विमान से नहीं। किन्तु कौशाम्बी में भगवान् महावीर के दर्शन हेतु चन्द्र-सूर्य अपने मूल विमान से प्राये।' महावीर चरियं के अनुसार चन्द्र-सूर्य भगवान के समवसरण में आये, जबकि सती मृगावती भी वहाँ बैठी थी। रात होने पर भी उसे प्रकाश के कारण ज्ञात नहीं हुआ और वह भगवान् की वाणी सुनने में वहीं बैठी रही । चन्द्र-सूर्य के जाने पर जब वह अपने स्थान पर गई तब चन्दनबाला ने उपालम्भ दिया। मृगावती को प्रात्मालोचन करते-करते केवलज्ञान हो गया । यह भगवान् की केवली-चर्या के चौबीसवें वर्ष की घटना है।
७. हरिवंश कुलोत्पत्ति :- हरि और हरिणीरूप युगल को देखकर एक देव को पूर्वजन्म के वैर की स्मति हो पाई। उसने सोचा "ये दोनों यहां भोगभूमि में सुख भोग रहे हैं और आयु पूर्ण होने पर देवलोक में जायेंगे। प्रतः ऐसा यत्न करू कि जिससे इनका परलोक दुःखमय हो जाय ।" उसने देव शक्ति से उनकी दो कोस की ऊँचाई को सौ धनुष कर दिया, प्राय भी घटाई और दोनों को भरतक्षेत्र की चम्पानगरी में लाकर छोड़ दिया। वहाँ के भूपति १ आव० नियुक्ति में प्रभु की छमस्थावस्था में संगम देव द्वारा घोर परीषह देने के बाद कौशाम्बी में चन्द्र-सूर्य का मूल विमान से प्रागमन लिखा है । कोसंवि चंद सूरो अरणं.. ..." । प्राव नि० दी०, गा० ५१८. पत्र १०५ । २ साहावियाई पच्चक्ख दिस्समारणाणि पारुहेउण । प्रोयरिया भत्तीए वंदरणवडियाए ससिसूरा ।।६।। तेसि विमाणनिम्मल मऊह निवहप्पयासिए गयणे । जायं निसिपि लोगो प्रवियाणंतो सुणइ धम्मं ।।१०।। नवरं नाउं समयं चंदणबाला मवत्तिणी नमिउं। . सामि समणीहि समं निययावासं गया सहसा ॥११॥ सा पुरण मिगावई जिणकहाए वक्खित्तमाणसा परिणयं । एगागिरणी चियट्ठिया दिणंति काऊण प्रोसरणे ।।१२।।
[महावीर चरियं (गुणचन्द्र), प्रस्ताव ८, पत्र १७५] ३ कुणतिय से दिनप्पभावेण धणुसयं उच्चत्तं ।। वसु० हि०, पृ० ३५७
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