SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [गर्भापहार प्रसंभव नही, है कि तीर्थंकर का गर्भहरण आश्चर्यजनक घटना हो सकती है, पर असंभव नहीं। समवायांग सूत्र के ८३ वें समवाय में गर्भपरिवर्तन का उल्लेख मिलता है। स्थानांग सूत्र के पांचवें स्थान में भी भगवान् महावीर के पंचकल्याणकों में उत्तराफाल्गुनी नक्षण में गर्भपरिवर्तन का स्पष्ट उल्लेख है । स्थानांग सूत्र के . १०वें स्थान में दश आश्चर्य गिनाये गये हैं। उनमें गर्भ-हरण का दूसरा स्थान है । वे आश्चर्य इस प्रकार है : उवसम्ग, गब्भहरणं इत्थीतित्थं प्रभाविया-परिसा । कण्हस्स अवरकंका, उत्तरणं चंद-सूराणं ।। हरिवंसकुलुप्पत्ती चमरुप्पातो य अट्ठसयसिद्धा। अस्संजतेसु पूा, दस वि अगतेण कालेण ।। [स्थानांग भा. २ सूत्र ७७७, पत्र ५२३-२] १. उपसर्ग :-श्रमण भगवान् महावीर के समवसरण में गोशालक ने सर्वानुभूति और सुनक्षत्र मुनि को तेजोलेश्या से भस्मीभूत कर दिया । भगवान् पर भी तेजोलेश्या का उपसर्ग किया। यह प्रथम आश्चर्य है। २. गर्भहरण :-तीर्थंकर का गर्भहरण नहीं होता, पर श्रमण भगवान् महावीर का हना । यह दूसरा आश्चर्य है। जैनागमों की तरह वैदिक परम्परा में भी गर्भ-परिबर्तन की घटना का उल्लेख है। वसुदेव की संतानों को कंस जब नष्ट कर देता था तब विश्वात्मा विष्णु योगमाया को आदेश देते हैं कि देवकी का गर्भ रोहिणी के उदर में रखा जाय । विश्वात्मा के आदेश से योगमाया ने देवकी के गर्भ को रोहिणी के उदर में स्थापित किया ।' ३. स्त्री-तीर्थंकर :-सामान्य रूप से तीर्थंकरपद पुरुष ही प्राप्त करते हैं, स्त्रियाँ नहीं। वर्तमान अवसपिणी काल में १९वें तीर्थंकर मल्ली भगवती स्त्री रूप से उत्पन्न हुए, अतः आश्चर्य है। ४. प्रभाविता परिषद् :-तीर्थंकर का प्रथम प्रवचन अधिक प्रभावशाली होता है, उसे श्रवण कर भोगमार्ग के रसिक प्राणी भी त्यागभाव स्वीकार करते १ गच्छ देवि व्रज भद्रे, गोपगोभिरलंकृतम् । रोहिणी वसुदेवस्य, भार्यास्ते नन्दगोकुले । अन्याश्च कंससंविग्नाः, विवरेषु वसन्ति हि ॥७॥ देवक्या जठरे गर्म, शेषाख्यं धाम मामकम् । तत् सन्निकृष्य रोहिण्या, उदरे सन्निवेशय ॥८॥ [श्रीमद्भागवत, स्कंध १०, अध्याय २] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy