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________________ पूर्वभव की साधना] भगवान् महावीर २६. प्रियमित्र चक्रवर्ती ३०. सहस्रार स्वर्ग का देव ३१. नन्द राजा ३२. अच्यत स्वर्ग का देव ३३. भगवान् महावीर दोनों परम्परागों में भगवान् के पूर्वभवों के नाम एवं संख्या में भिन्नता होने पर भी इस मूल एवं प्रमुख तथ्य को एकमत से स्वीकार किया गया है कि अनन्त भवभ्रमण के पश्चात् सम्यग्दर्शन की उपलब्धि तथा कर्मनिर्जरा के प्रभाव से नयसार का जीव अभ्युदय और आत्मोन्नति की ओर अग्रसर हुआ । दुष्कृतपूर्ण कर्मबन्ध से उसे पुनः एक बहुत लम्बे काल तक भवाटवी में भटकना पड़ा और अन्त में नन्दन के भव में अत्युत्कट चिन्तन, मनन एवं भावना के साथ-साथ उच्चतम कोटि के त्याग, तप, संयम, वैराग्य, भक्ति और वैगावत्य के प्राचरण से उसने महामहिमापूर्ण सर्वोच्चपद तीर्थंकर-नामकर्म का उपार्जन किया। भगवान महावीर के पूर्वभवों की जो यह संख्या दी गई है, उसमें नयसार के भव से महावीर के भव तक के सम्पर्ण भव नहीं पाये हैं। दोनों परम्पराओं की मान्यता इस सम्बन्ध में समान है कि ये २७ भव केवल प्रमुख-प्रमुख भव हैं। इन सत्ताईस भवों के बीच में भगवान् के जीव ने अन्य अगणित भवों में भ्रमण किया। भ० महावीर के कल्याणक भगवान महावीर के पाँच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए । उत्तराफाल्गनी नक्षत्र में दशम स्वर्ग से च्यवन कर उसी उत्तराफाल्गनी नक्षत्र में वे देवानन्दा के गर्भ में आये । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही उनका देवानन्दा के गर्भ से महारानी त्रिशलादेवी के गर्भ में साहरण किया गया । उत्तराफाल्गनी नक्षत्र में ही भ० महावीर का जन्म हुआ। उत्तराफाल्गनी नक्षत्र में ही प्रभ महावीर मण्डित हो सागार से अरणगार बने और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में ही प्रभ महावीर ने कृत्स्न (समग्र), प्रतिपूर्ण, अव्याघात, निरावरण अनन्त और अनुत्तर केवलज्ञान एवं केवलदर्शन एक साथ प्राप्त किया। स्वाति नक्षत्र में भगवान् महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया।' च्यवन और गर्भ में प्रागमन प्रवर्तमान अवसपिरणी काल के सुषम-सुषम, सुषम, सुषम-दष्षम नामक १ आचारांग सूत्र, श्रु० २, तृतीया चूला, भावना नामक १५वां अध्ययन का प्रारम्भिक सूत्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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