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साधना]
भगवान् महावीर
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रक्षकों ने कहा-"जब तक शालि-धान्य पक नहीं जाता तब तक सेना सहित घेरा डाल कर यहीं रहना है। और शेर से रक्षा करनी है।"
इतने समय तक यहाँ कौन रहेगा, ऐसा विचार कर त्रिपृष्ठ ने शेर के रहने का स्थान पूछा और सशस्त्र रथारूढ़ हो गुफा पर पहुँच कर गुफास्थित शेर को ललकारा । सिंह भी उठा और भयंकर दहाड़ करता हुआ अपनी माँद से बाहर निकला।
उत्तम पुरुष होने के कारण त्रिपष्ठ ने शेर को देख कर सोचा-"यह तो पैदल और शस्त्ररहित निहत्था है, फिर मैं रथारूढ़ और शस्त्र से सुसज्जित हो इस पर आक्रमण करू, यह कैसे न्यायसंगत होगा? मुझे भी रथ से नीचे उतर कर बराबरी से मुकाबला करना चाहिये।"
ऐसा सोच कर वह रथ से नीचे उतरा और शस्त्र फेंक कर सिंह के सामने तन कर खड़ा हो गया। सिंह ने ज्यों ही उसे बिना शस्त्र के सामने खड़ा देखा तो सोचने लगा--"अहो ! यह कितना धृष्ट है, रथ से उतर कर एकाकी मेरी गफा पर आ गया है । इसे मारना चाहिये । ऐसा सोच सिंह ने प्राक्रमण किया। त्रिपष्ट ने साहसपूर्वक छलांग भर कर मेर के जबड़े दोनों हाथों से पकड लिये और जीर्ण वस्त्र की तरह शेर को अनायास ही चीर डाला । दर्शक, कुमार का साहस देख कर स्तब्ध रह गये और कुमार के जय-घोषों से गगन गूंज उठा।२
अश्वग्रीव ने जब कुमार त्रिपष्ठ के अद्भुत शौर्य की यह कहानी सुनी तो उसे कुमार के प्रबल शौर्य से बड़ी ईर्ष्या हुई। उसने कुमार को अपने पास बलवाया और उसके न पाने पर नगर पर चढ़ाई कर दी। दोनों में खूब जमकर यद्ध हमा। त्रिपष्ठ की शक्ति के सम्मुख अश्वग्रीव ने जब अपने शस्त्रों को निस्तेज देखा तो उसने चक्र-रत्न चलाया, किन्तु त्रिपृष्ठ ने चक्र-रत्न को पकड़ कर उस ही के द्वारा अश्वग्रीव का शिर काट डाला और स्वयं प्रथम वासुदेव बना।
____ एक दिन त्रिपृष्ठ के राजमहल में कुछ संगीतज पाये और अपने मधुर संगीत की स्वर-लहरी से उन्होंने श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया। राजा ने सोते समय शय्यापालकों से कहा- "मुझे जब नींद आ जाय तो गाना बन्द करवा देना।" किन्तु शय्यापालक संगीत की माधुरी से इतने प्रभावित हए कि
१ त्रि. श. पु. च., १५०, १० स०, श्लोक १४० । २ ॥न पाणिनोवोष्ठमपणाधरं पुनः । धृत्वा त्रिपृष्ठस्तं सिंह जीर्णवस्त्रमिवाटणात् । पुष्पाभरण वस्त्राणि ...... | त्रि० १० पु० च० १०१।१४१-१५०
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