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देश-दशा] भगवान् महावीर
५३५ राजनैतिक दृष्टि से भी यह समय उथल-पुथल का था। उसमें स्थिरता व एकरूपता नहीं थी। कई स्थानों पर प्रजातन्त्रात्मक गणराज्य थे, जिनमें नियमित रूप से प्रतिनिधियों का चुनाव होता था। जो प्रतिनिधि राज्य-मंडल या सांथागार के सदस्य होते, वे जनता के व्यापक हितों का भी ध्यान रखते थे । तत्कालीन गणराज्यों में लिच्छवी गणराज्य सबसे प्रबल था। इसकी राजधानी वैशाली थी । महाराजा चेटक इस गणराज्य के प्रधान थे। महावीर स्वामी की माता त्रिशला इन्हीं महाराज चेटक की बहिन थीं। काशी और कौशल के प्रदेश भी इसी गणराज्य में शामिल थे। इनकी व्यवस्थापिका-सभा "वज्जियन राजसंघ" कहलाती थी।
(लिच्छवी गणराज्य के अतिरिक्त शाक्य गणराज्य का भी विशेष महत्त्व था। इसकी राजधानी कपिलवस्तू' थी। इसके प्रधान महाराजा शुद्धोदन थे, जो गौतम बुद्ध के पिता थे । इन गणराज्यों के अलावा मल्ल गणराज्य, जिसकी राजधानी कुशीनारा और पावा थी, कोल्य गणराज्य, प्राम्लकप्पा के बुलिगण, पिप्पलिवन के मोरीयगण आदि कई छोटे-मोटे गणराज्य भी थे। इन गणराज्यों के अतिरिक्त मगध, उत्तरी कोशल, वत्स, अवन्ति, कलिंग, अंग, बंग आदि कतिपय स्वतन्त्र राज्य भी थे। इन गणराज्यों में परस्पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस तरह उस समय विभिन्न गरण एवं स्वतन राज्यों के होते हए भी तथाकथित निम्नवर्ग की दशा अत्यन्त चिन्तनीय बनी हुई थी। ब्राह्मण-प्रेरित राजन्यवर्गों के उत्पीड़न से जनसाधारण में क्षोभ और विषाद का प्राबल्य था।
इन सब परिस्थितियों का प्रभाव उस समय विद्यमान पार्श्वनाथ के संघ पर भी पड़े बिना नहीं रहा। श्रमणसंघ की स्थिति प्रतिदिन क्षीण होने लगी। मति-बल में दर्बलता पाने लगी तथा अनुशासन की अतिशय मदता से प्राचारव्यवस्था में शिथिलता दिखाई देने लगो। फिर भी कुछ विशिष्ट मनोबल वाले श्रमण इस विषम स्थिति में भी अपने मूलस्वरूप को टिकाये हुए थे । वे याज्ञिकी हिंसा का विरोध और अहिंसा का प्रचार भी करते थे, पर उनका बल पर्याप्त नहीं था। फिर साधना का लक्ष्य भी बदला हुआ था। धर्म-साधना का हेतु निर्वाण-मक्ति के बदले मात्र अभ्यदय-स्वर्ग रह गया था। यह चतुर्थकाल की समाप्ति का समय था। फलतः जन-मन में धर्म-भाव की रुचि कम पड़ती जा रही थी। ऐसे विषम समय में जन-समुदाय को जागृत कर, उसमें सही भावना भरने और सत्यमार्ग बताने के लिए ज्योतिर्धर भगवान् महावीर का जन्म
हुआ।
पूर्वभव को साधना जैन धर्म यह नहीं मानता कि कोई तीर्थकर या महापुरुष ईश्वर का अंश १ मि० ह्रीस डैविड्स-बुद्धिस्ट इंडिया, पृ० २३
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