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भगवान् महावीर
प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल में भरतक्षेत्र के चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर हुए। घोरातिघोर परीषहों को भी अतुल धैर्य, अलौकिक . साहस, सुमेरुतुल्य अविचल दृढ़ता, अथाह सागरोपम गम्भीरता एवं अनुपम समभाव के साथ सहन कर प्रभु महावीर ने अभूतपूर्व सहनशीलता, क्षमा एवं अद्भुत घोर तपश्चर्या का संसार के समक्ष एक नवीन कीर्तिमान प्रतिष्ठापित किया।
भगवान महावीर न केवल एक महान धर्मसंस्थापक ही थे अपितु वे महान् लोकनायक, धर्मनायक, क्रान्तिकारी सुधारक, सच्चे पथ-प्रदर्शक, विश्वबन्धुत्व के प्रतीक, विश्व के कर्णधार और प्राणिमात्र के परमप्रिय हितचिन्तक भी थे।
'सव्वे जीवा वि इच्छंति जीविउं न मरीजिउं' इस दिव्यघोष के साथ उन्होंने न केवल मानव समाज को अपितु पशुओं तक को भी अहिंसा, दया और प्रेम का पाठ पढ़ाया। धर्म के नाम पर यज्ञों में खुलेआम दी जाने वाली क्रूर पशुबली के विरुद्ध जनमत को आन्दोलित कर उन्होंने इस घोर पापपूर्ण कृत्य को सदा के लिये समाप्तप्राय कर असंख्य प्राणियों को अभयदान दिया।
यही नहीं, भगवान् महावीर ने रूढ़िवाद, पाखण्ड, मिथ्याभिमान और वर्णभेद के अन्धकारपूर्ण गहरे गर्त में गिरती हुई मानवता को ऊपर उठाने का अथक प्रयास भी किया। उन्होंने प्रगाढ़ अज्ञानान्धकार से आच्छन्न मानव-हृदयों में अपने दिव्य ज्ञानालोक से ज्ञान की किरणें प्रस्फुटित कर विनाशोन्मुख मानवसमाज को न केवल विनाश से बचाया अपितु उसे सम्यगज्ञान, सम्यगदर्शन और सम्यक्चारित्र की रत्नत्रयी का अक्षय पाथेय दे मुक्तिपथ पर अग्रसर किया ।
भगवान महावीर ने विश्व को सच्चे समतावाद, साम्यवाद, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का प्रशस्त मार्ग दिखा कर अमरत्व की ओर अग्रसर किया, जिसके लिये मानव-समाज उनका सदा-सर्वदा ऋणी रहेगा।
(भगवान् महावीर का समय ईसा पूर्व छठी शताब्दो माना गया है, जो कि विश्व के सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। ई० पूर्व छठी शताब्दी में, जबकि भारत में भगवान महावीर ने और उनके समकालीन महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का उपदेश देकर धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रान्ति का सूत्रपात किया, लगभग उसी समय चीन में लाप्रोत्से और कांगफयत्सी
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