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'भावार्य परम्परा भगवान् श्री पार्श्वनाथ
५३१ रायप्रसेणी और उत्तराध्ययन सूत्र में दिये गये दोनों केशिश्रमणों के परिचय के समीचीन मनन के अभाव में और समान नाम वाले इन दोनों श्रमणों के समय का सम्यक्रूपेण विवेचनात्मक पर्यवेक्षण न करने के कारण ही कुछ विद्वानों द्वारा दोनों को ही केशिश्रमण मान लिया गया है ।
उपर्युक्त तथ्यों से यह निर्विवादरूप से सिद्ध हो जाता है कि प्रदेशिप्रतिबोधक चार ज्ञानधारी केशिश्रमण आचार्य समुद्रसूरि के शिष्य एवं पार्श्वपरंपरा के मोक्षमार्गी चतुर्थ प्राचार्य थे, न कि गौतम गणधर के साथ संवाद करने वाले तीन ज्ञानधारक केशिकुमार श्रमरण । दोनों एक न होकर भिन्न-भिन्न हैं । एक का निर्वाण पार्श्वनाथ के शासन में हुआ जबकि दूसरे का महावीर के शासन में ।
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