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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भगवान पार्श्वनाथ की केशिकुमार श्रमण को अलग-अलग मान कर दो केशिश्रमणों का होना स्वीकार किया गया है।
इस सम्बन्ध में वास्तविक स्थिति यह है कि प्रदेशी राजा को प्रतिबोध देने वाले प्राचार्य केशी और गौतम गणधर के साथ संवाद के पश्चात् पंच महाव्रत-धर्म स्वीकार करने वाले केशिकुमार श्रमण एक न होकर अलग-अलग समय में केशिश्रमण हुए हैं।
प्राचार्य केशी, जो कि भगवान् पार्श्वनाथ के चौथे पट्टधर और श्वेताम्बिका के महाराज प्रदेशी के प्रतिबोधक माने गये हैं, उनका काल उपकेशगच्छ पट्टावली के अनुसार पाव-निर्वाण संवत् १६६ से २५० तक का है। यह काल भगवान् महावीर की छद्मस्थावस्था तक का ही हो सकता है।
इसके विपरीत श्रावस्ती नगरी में दूसरे केशिकुमार श्रमण और गौतम गणधर का सम्मिलन भगवान् महावीर के केवलीचर्या के पन्द्रह वर्ष बीत जाने के पश्चात् होता है।
इस प्रकार प्रथम केशिश्रमण का काल भगवान महावीर के छद्मस्थकाल तक का और दूसरे केशिकुमार श्रमण का महावीर की केवलीचर्या के पन्द्रहवें वर्ष के पश्चात् तक ठहरता है ।
इसके अतिरिक्त रायप्रसेणी सूत्र में प्रदेशिप्रतिबोधक केशिश्रमण को चार ज्ञान का धारक बताया गया है तथा जिन केशिकुमार श्रमण का गौतम गणधर के साथ श्रावस्ती में संवाद हुआ, उन केशिकुमार श्रमण को उत्तराध्ययन सूत्र में तीन ज्ञान का धारक बताया गया है।
ऐसी दशा में प्रदेशिप्रतिबोधक चार ज्ञानधारक केशिश्रमण, जो महावीर के छद्मस्थकाल में हो सकते हैं, उनका महावीर के केवलीचर्या के पन्द्रह वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात् तीन ज्ञानधारक के रूप में गौतम के साथ मिलना किसी भी तरह युक्तिसंगत और संभव प्रतीत नहीं होता ।। १ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास (पूर्वाद्ध), पृ०४८ २ इच्चेए एं पदेसी ! महं तव चउविहेणं नाणेणं इमेयारूवं प्रभत्थियं जाव समुप्पनं जाणामि ।
[रायपसेणी] ३ तस्स लोगपईवस्स, पासी सीसे महायसे । केसीकुमार समणे, विज्जाचरण पारगे ।।२।। मोहिनाण सुए बुद्ध, सीससंघसमाउले । गामाणुगाम रीयन्ते, सावत्थि नगरिमागए ।।३।।
[उत्तराध्यथन सूत्र, प्र० २३]
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