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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[भगवान् पार्श्वनाथ की
१. मार्य शुभवत्त ..
भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण के पश्चात् उनके प्रथम पट्टधर गणधर शुभदत्त हुए। उन्होंने चौबीस वर्ष तक आचार्यपद पर रहते हुए चतुर्विध संघ का बड़ी कुशलता से नेतृत्व किया और धर्म का उपदेश करते रहें ।
भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण के चौबीस वर्ष पश्चात् आर्य हरिदत्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर आर्य शुभदत्त मोक्ष पधारे । २. प्रार्य हरिदत्त
भगवान् पार्श्वनाथ के द्वितीय पट्टधर आर्य हरिदत्त हुए। पार्श्वनिर्वाण संवत् २४ से ६४ तक आप आचार्यपद पर रहे।
श्रमण बनने से पूर्व हरिदत्त ५०० चोरों के नायक थे । गणधर शुभदत्त के शिष्य श्री वरदत्त मुनि को एक बार जंगल में ही अपने ५०० शिष्यों के साथ रुकना पड़ा । उस समय चोर-नायक हरिदत्त अपने ५०० साथी चोरों के साथ मुनियों के पास इस प्राशा से गया कि उनके पास जो भी धन-सम्पत्ति हो वह लूट ली जाय। पर वरदत्त मुनि के पास पहुँचने पर ५०० चोरों और चोरों के नायक को धन के स्थान पर उपदेश मिला। मुनि वरदत्त के उपदेश से हरिदत्त अपने ५०० साथियों सहित दीक्षित हो गये और इस तरह जो चोरों के नायक थे, वे ही हरिदत्त मुनिनायक और धर्मनायक बन गये।
गरुसेवा में रह कर मूनि हरिदत्त ने बड़ी लगन के साथ ज्ञान-संपादन किया और अपनी कुशाग्रबुद्धि के कारण एकादशांगी के पारगामी विद्वान् हो गये। इनकी योग्यता से प्रभावित हो आचार्य शुभदत्त ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
प्राचार्य हरिदत्त अपने समय के बड़े प्रभावशाली प्राचार्य हुए हैं । आपने "वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति" इस मत के कट्टर समर्थक और प्रबल प्रचारक, उद्भट विद्वान् लौहित्याचार्य को शास्त्रार्थ द्वारा राज्यसभा में पराजित कर 'अहिंसा परमो धर्मः' की उस समय के जनमानस पर धाक जमा दी थी।
सत्य के पुजारी लौहित्याचार्य अपने एक हजार शिष्यों सहित आचार्य हरिदत्तसरि के पास दीक्षित हो गये और उनकी आज्ञा लेकर दक्षिण में अहिंसाधर्म का प्रचार करने के लिए निकल पड़े। आपने प्रतिज्ञा की कि जिस तरह अज्ञानवश उन्होंने हिंसा-धर्म का प्रचार किया था, उससे भी शतगणित वेग से वे अहिंसाधर्म का प्रचार करेंगे । अपने संकल्प के अनुसार उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा को निरन्तर धर्मप्रचार द्वारा कार्यरूप में परिणत कर बताया ।
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