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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भ० पार्श्वनाथ का व्यापक
जनसमहों ने जब उन देवताओं और देवियों के पूर्वभव के सम्बन्ध में त्रिकालदर्शी सर्वज्ञ, तीर्थंकर भगवान् महावीर के मुखारविन्द से यह सुना कि ये सभी देव
और देवियां भगवान् पार्श्वनाथ के अन्तेवासी और अन्तेवासिनियाँ थीं तो निश्चित रूप से भगवान् पार्श्वनाथ के प्रति उस समय के जनमानस में प्रगाढ़ भक्ति और अगाध श्रद्धा का घर कर लेना सहज स्वाभाविक ही था।
इसके साथ ही साथ अपने नीरस नारी जीवन से ऊबी हुई उन दो सौ सोलह (२१६) वृद्धकुमारिकाओं ने भगवान पार्श्वनाथ की कृपा से महती देवीऋद्धि प्राप्त की । अतः सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि देवियां बन कर उन्होंने निश्चित रूप से जिनशासन की प्रभावना के अनेक कार्य किये होंगे और उस कारण भारत का मानवसमाज निश्चित रूप से भगवान पार्श्वनाथ का विशिष्ट उपासक बन गया होगा।
भगवान पार्श्वनाथ के कृपाप्रसाद से ही तापस की धनी में जलता हुआ नाग और नागिन का जोड़ा धरणेन्द्र और पद्मावती बना तथा भगवान् पार्श्वनाथ के तीन शिष्य क्रमशः सूर्यदेव, चन्द्रदेव और शुक्रदेव बने ।
श्रद्धालु भक्तों की यह निश्चित धारणा है कि इन देवियों, देवों और देवेन्द्रों ने समय-समय पर शासन को प्रभावना की है। इसका प्रमाण यह है कि धरणेन्द्र और पद्मावती के स्तोत्र आज भी प्रचलित हैं ।
भद्रबाह के समय में संघ को संकटकाल में पार्श्वनाथ का स्तोत्र ही दिया गया था। सिद्धसेन जैसे पश्चाद्वर्ती प्राचार्यों ने भी पार्श्वनाथ की स्तुति से ही शासनप्रभावना की।
इन वृद्धकुमारिकाओं के आख्यानों से उस समय की सामाजिक स्थिति का दिग्दर्शन होता है कि सामाजिक रूढ़ियों अथवा अन्य किन्हीं कारणों से उस समय समृद्ध परिवारों को भी अपनी कन्याओं के लिये योग्य वरों का मिलना बड़ा दूभर था। भगवान पार्श्वनाथ ने जीवन से निराश ऐसे परिवारों के समक्ष साधना का प्रशस्त मार्ग प्रस्तुत कर तत्कालीन समाज को बड़ी राहत प्रदान की।
इन सब पाख्यानों से सिद्ध होता है कि भगवान पार्श्वनाथ ने उस समय के मानवसमाज को सच्चे सुख की राह बताई एवं उलझी हई जटिल समस्याओं को सुलझा कर मानव समाज की अत्यधिक भक्ति और प्रगाढ़ प्रीति प्राप्त की और अपने अमृतोपम प्रभावशाली उपदेशों से जनमन पर ऐसी अमिट छाप लगाई कि हजारों वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी प्रभु पार्श्वनाथ को परम्परागत छाप प्राज के जनमानस पर भी स्पष्टतः दिखाई दे रही है।
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