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विशिष्ट देवियों के रूप में]
भगवान् श्री पार्श्वनाथ
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शिथिलाचार की आलोचना किये बिना ही संलेखनापूर्वक कालकवलिताएं हो उपरिवर्णित इन्द्रों एवं सूर्य तथा चन्द्र की अग्रमहिषियां बनीं।
भगवान् पार्श्वनाथ का व्यापक और अमिट प्रभाव वीतरागता और सर्वज्ञता आदि आत्मिक गुणों की सब तीर्थंकरों में समानता होने पर भी संभव है, पार्श्वनाथ में कोई विशेषता रही हो, जिससे कि वे अधिकाधिक लोकप्रिय हो सके ।
जैन साहित्य के अन्तर्गत स्तुति, स्तोत्र और मंत्रपदों से भी ज्ञात होता है कि वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में से भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति के रूप में जितने मंत्र या स्तोत्र उपलब्ध होते हैं, उतने अन्य के नहीं हैं।
भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति से ओतप्रोत अनेक महात्माओं एवं विद्वानों द्वारा रचित प्रभु पार्श्वनाथ की महिमा से पूर्ण कई महाकाव्य, काव्य, चरित्र, अगणित स्तोत्र आदि और देश के विभिन्न भागों में प्रभु पार्श्व के प्राचीन भव्य कलाकृतियों के प्रतीक विशाल मन्दिरों का बाहल्य, ये सब इस बात के पुष्ट प्रमाण हैं कि भगवान पार्श्वनाथ के प्रति धर्मनिष्ठ मानवसमाज पीढ़ियों से कृतज्ञ और श्रद्धावनत रहा है ।
आगमों में अन्यान्य तीर्थंकरों का 'अरहा' विशेषण से ही उल्लेख किया गया है । जैसे-'मल्ली अरहा', 'उसभेणं अरहा', 'सीयलेणं अरहा', 'संतिस्सणं अरहो' आदि । पर पार्श्वनाथ का परिचय देते समय भागमों में लिखा गया है-'पासेणं अरहा पुरिसादाणीए' 'पासस्सरणं अरहो पुरिसादारिणअस्स' ।। इससे प्रमाणित होता है कि आगमकाल में भी भगवान पार्श्वनाथ की कोई खास विशिष्टता मानी जाती थी। अन्यथा उनके नाम से पहले विशेषण के रूप में 'अरहा अरिट्टनेमी' की तरह 'पासेणं अरहा' केवल इतना ही लिखा जाता।
_ 'पुरुषादानीय' का अर्थ होता है पुरुषों में आदरपूर्वक नाम लेने योग्य । महावीर के विशिष्ट तप के कारण जैसे उनके नाम के साथ 'समणे भगवं महावीरे' लिखा जाता है, वैसे ही पार्श्वनाथ के नाम के साथ अंग-शास्त्रों में 'पूरिसादाणी' विशेषण दिया गया है। अतः इस विशेषण के जोड़ने का कोई न कोई विशिष्ट कारण अवश्य होना चाहिये ।
वह कारण यह हो सकता है कि पूर्वोक्त २२० देवों और देवियों के प्रभाव से जनता अत्यधिक प्रभावित हुई हो। देवियों एवं देवताओं की आश्चर्यजनक विपुल ऋद्धि और अत्यन्त अद्भुत शक्ति के प्रत्यक्षदर्शी विभिन्न नगरों के विशाल १ समवायांग व कल्पसूत्र आदि । २ समवायांग सूत्र, समवाय ३८ व कल्पसूत्र आदि ।
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