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________________ विशिष्ट देवियों के रूप में भगवान् श्री पार्श्वनाथ ५२१ पूर्वभव में वाराणसी नगरी के अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पतियों की पुत्रियां थीं। ___ इसी प्रकार चौथे वर्ग में उल्लिखित उत्तर के नव निकायों के ६ भूतानन्द आदि उत्तरेन्द्रों की ५४ अग्रमहिषियां भगवान् महावीर के समवशरण में उपस्थित हुई। भगवान् को वन्दन करने के पश्चात् क्रमश: उन्होंने भी काली देवी की तरह अपनी अद्भुत वैक्रियशक्ति का परिषद् के समक्ष अत्यद्भुत चमत्कार प्रदर्शित किया। गणधर गौतम द्वारा उन ५४ देवियों के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न करने पर भगवान महावीर ने फरमाया- "गौतम ये ५४ ही उत्तरेन्द्रों की अग्रमहिषियाँ अपने पूर्वजन्म में चम्पा नगरी के निवासी अपने समान नाम वाले माता-पिताओं की रूपा, सुरूपा, रूपांसा, रूपकावती, रूपकान्ता, रूपप्रभा, आदि नाम की पुत्रियां थीं। ये सभी वृद्धकुमारियां थीं। जराजीर्ण हो जाने पर भी इन सबका विवाह नहीं हुआ था । भगवान् पार्श्वनाथ के चम्पानगरी में पधारने पर इन सब वृद्धकुमारिकाओं ने उनके उपदेश से प्रभावित हो प्रवर्तिनी सुव्रता के पास यम ग्रहण किया । इन सबने कठोर तपस्या करके संयम के मूल गणों का पूर्णरूपेण पालन किया । लेकिन शरीरबाकुशिका होकर संयम के उत्तर गुणों की यह सब विराधिकायें बन गई। बहत वर्षों तक संयम और तप की साधना से इन्होंने चरित्र का पालन किया और अन्त में संलेखनापूर्वक प्रायुष्य पूर्ण कर अपने चारित्र के उत्तर गणों के दोषों की आलोचना नहीं करने के कारण उत्तरेन्द्र की अग्रमहिषियां हुईं। पंचम वर्ग में दक्षिण के व्यन्तरेन्द्रों की ३२ अग्रमहिषियों का वर्णन है । कमला, कमलप्रभा, उत्पला, सुदर्शना, रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा, पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा, भार्या, पद्मा, वसुमती, कनका, कनकप्रभा, बडेसा, केतमती, नइरसेणा, रईप्रिया, रोहिणी, नमिया, ह्री, पुष्पवती, भुजगा. भुजगावती, महाकच्छा, अपराजिता, सुघोषा, विमला, सुस्सरा, सरस्वती, इन सब देवियों ने भी काली की ही तरह भगवान महावीर के समवशरण में उपस्थित हो अपनी वैक्रियशक्ति का प्रदर्शन किया। गौतम द्वारा इनके पूर्वभव के सम्बन्ध में जिज्ञासा करने पर भगवान् महावीर ने कहा-ये बत्तीसों देवियां पूर्वभव में नागपुर निवासी अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पतियों को पुत्रियां थीं। ये भी जीवनभर अविवाहित रहीं। जब ये वृद्ध कन्यायें--जीर्ण कन्यायें हो चुकी थीं, उस समय नागपूर में भगवान पार्श्वनाथ का आगमन सुन कर ये भी भगवान् के समवशरण में पहँची और उनके उपदेश से विरक्त हो सुव्रता प्रार्या के पास प्रवजित हो गई। इन्होंने अनेक वर्षों तक संयम का पालन किया और अनेक प्रकार की उग्र तपस्यायें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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