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________________ ५२० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [भ० पार्श्वनाथ की साध्वियां आर्या द्वारा मना किये जाने पर भी उसने शरीर बाकुशिकता का शिथिलाचार नहीं छोड़ा और अलग उपाश्रय में रह कर स्वतन्त्र रूप से विचरने लगी। ___ज्ञान, दर्शन, चारित्र से अलग रहने के कारण उसे पासत्था, पासत्थ विहारिणी, उसन्ना, उसन्न विहारिणी आदि कहा गया । वर्षों चारित्र का पालन कर एक पक्ष की संलेखना से अन्त में वह बिना आलोचना किये ही काल कर चमरचंचा राजधानी में काली देवी के रूप में चमरेन्द्र की अग्रमहिषी हुई। चमरचंचा से च्यव कर काली महाविदेह में उत्पन्न होगी और वहाँ अन्त में मुक्ति प्राप्त करेगी।" काली देवी की ही तरह रात्रि, रजनी, विद्युत और मेधा नाम की चमरेन्द्र की अग्रमहिषियों ने भी भगवान महावीर के समवशरण में उपस्थित हो प्रभु को वन्दन करने के पश्चात् अपनी वैक्रियलब्धियों का चमत्कारपूर्ण प्रदर्शन किया। गौतम गणधर के प्रश्न के उत्तर में भगवान् महावीर ने उनके पूर्वभव का परिचय देते हए फरमाया कि ये चारों देवियां अपने पर्वभव में आमलकल्पा नगरी के अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पतियों की पुत्रियाँ थीं और जराजीणं वद्धाएं हो जाने तक भी उनका विवाह नहीं हुआ था। भगवान पार्श्वनाथ के उपदेश से विरक्त हो उन्होंने काली की तरह प्रव्रज्या ग्रहण की, विविध तपस्याएं की, शरीर बाकुशिका बनीं, श्रमणी संघ से अलग हो स्वतन्त्रविहारिणी बनी और अन्त में बिना अपने शिथिलाचार की आलोचना किये ही संलेखना कर वे चमरेन्द्र की अग्रमहिषियां बनीं। ये रात्रि आदि चारों देवियां भी देवीमायुष्य पूर्ण होने पर महाविदेह क्षेत्र में एक भव कर मुक्त होंगी। __ ज्ञाताधर्म कथा सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के दूसरे वर्ग में वरिणत शुभा, निशुभा, रंभा, निरंभा और मदना नाम की बलीन्द्र की पांचों अग्रमहिषियों ने भी भगवान् महावीर के समवशरण में उपस्थित हो काली देवी की तरह अपनी अद्भुत वैक्रियशक्ति का प्रदर्शन किया। उन देवियों ने अपने स्थान पर लौट जाने के अनन्तर गणधर गौतम के प्रश्न के उत्तर में भगवान् महावीर ने उनके पूर्वभव बताते हुए फरमाया कि वे सब अपने पूर्वभवों में सावत्थी नगरी में अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पतियों की पुत्रियाँ थीं। ___ तीसरे वर्ग में वर्णित नव निकायों के ६ ही दक्षिणेन्द्रों की छ-छ के हिसाब से कुल ५४ अग्रमहिषियाँ-इला, सतेरा, सोयामणि आदि--अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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