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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[भ० पार्श्व० की साध्वियां
आलोचना करे और भविष्य में ऐसा कभी न करे, पर भूता आर्या ने पुष्पचला की बात नहीं मानी। वह अकेली ही अलग उपाश्रय में रहने लगी और स्वतन्त्र होकर पूर्ववत् शरीरबाकुशिका ही बनी रही।
__तत्पश्चात् भूता आर्या ने अनेक चतुर्थ, षष्ठ और अष्टमभक्त आदि तप कर के अपनी आत्मा को भावित किया और संलेखनापूर्वक, अपने शिथिलाचार की आलोचना किये बिना ही, आयुष्य पूर्ण होने पर वह सौधर्म कल्प के श्री अवतंसक विमान में देवी हुई और इस प्रकार वह ऋद्धि उसे प्राप्त हुई।
देवलोक में एक पल्योपम को आयुष्य भोग कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगी और वहाँ वह सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगी।
श्रीदेवी की ही तरह ही आदि ६ देवियों ने भी भगवान् महावीर के दर्शन, वन्दन हेतु समवशरण में उपस्थित हो अपनी अत्यन्त आश्चर्यजनक वैक्रियलब्धि द्वारा मनोहारी दृश्यों का प्रदर्शन किया और प्रभ को वन्दन कर क्रमशः अपने स्थान को लौट गईं।
उन ६ देवियों के पूर्वभव सम्बन्धी गौतम की जिज्ञासा का समाधान करते हए श्रमण भगवान् महावीर ने फरमाया कि वे ही देवियाँ अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पतियों की पुत्रियाँ थीं। वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाने तक उनका विवाह नहीं हुआ, अतः वे वृद्धा-वृद्धकुमारिका, जी-जीर्णकुमारिका के विशेषणों से सम्बोधित की गई हैं। उन सभी वृद्धकुमारिकाओं ने भूता वृद्धकुमारिका की तरह भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेशों से प्रभावित हो प्रवतिनी पुष्पचूला के पास दीक्षा ग्रहण कर अनेक प्रकार की तपस्याएँ कीं, पर शरीरबाकुशिका बन जाने के कारण संयम की विराधिकाएँ हुईं। अपनी प्रवर्तिनी पुष्पचूला द्वारा समझाने पर भी वे नहीं मानी और स्वतन्त्र एकलविहारिणी हो गई। अन्त समय में संलेखना कर अपने शिथिलाचार की आलोचना किये बिना ही मर कर सौधर्म कल्प में ऋद्धिशालिनी देवियाँ हुईं । देवलोक की आयष्य पर्ण होने पर ये सब महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगी और अन्त में वहाँ निर्वाण प्राप्त करेंगी।
__ इसी प्रकार ज्ञाताधर्मकथा सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के १० वर्गों में कुल मिला कर २०६ जराजीर्ण वृद्धकुमारिकाओं द्वारा प्रभु पार्श्वनाथ के पास प्रव्रजित होने का निम्न क्रम से उल्लेख है
पथम वर्ग में चमरेन्द्र की पांच (५) अग्रिमहिषियाँ । दूसरे वर्ग में बलीन्द्र की पांच (५) अग्रमहिषियाँ।
तीसरे वर्ग में नव निकाय के नौ दक्षिणेन्द्रों में से प्रत्येक की छ:-छः अग्रमहिषियों के हिसाब से कुल ५४ अग्रमहिषियाँ।
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