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________________ ५१६ जैन धर्म का मोलिक इतिहास [भ० पार्श्व० की साध्वियां मास की संलेखनापूर्वक काल कर शक्रेन्द्र के सामानिक देव रूप में उत्पन्न होगी। देवभवपूर्ण होने पर महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य होकर बहुपुत्रिका का जीव तपसंयम की साधना से निर्वाणपद प्राप्त करेगा।" भगवान पार्श्वनाथ की साध्वियां विशिष्ट देवियों के रूप में भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेशों से प्रभावित हो समय-समय पर २१६ जराजीर्ण कुमारिकाओं ने पार्श्व प्रभु की चरणशरण ग्रहण कर प्रव्रज्या ली, इस प्रकार के वर्णन निरयावलिका और ज्ञाताधर्म कथा सुत्रों में उपलब्ध होते हैं। - उन आख्यानों से तत्कालीन सामाजिक स्थिति पर, भगवान् पार्श्वनाथ की अत्यधिक लोकप्रियता और उनके नाम के साथ 'पुरुषादानीय' विशेषण प्रयुक्त किये जाने के कारणों पर काफी अच्छा प्रकाश पड़ता है, अतः उन उपाख्यानों को यहां संक्षेप में दिया जा रहा है । निरयावलिका सूत्र के पुष्पचूलिका नामक चौथे वर्ग में श्री, ह्री, धी, कीति, बद्धि, लक्ष्मी, इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी और गन्धदेवी नाम की दश देवियों के दश अध्ययन हैं । प्रथम अध्ययन में श्रीदेवी के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है कि एक समय भगवान् महावीर राजगृह नगर के गणशील नामक उद्यान में पधारे । उस समय सौधर्म कल्प के श्री अवतंसक विमान को महती ऋद्धिशालिनी श्रीदेवी भी भगवान् महावीर के दर्शन करने के लिए समवशरण में आयी। श्रीदेवी ने अपने नाम-गोत्र का उच्चारण कर प्रभ को प्रांजलिपूर्वक आदक्षिणा-प्रदक्षिणा के साथ वन्दन कर समवशरण में अपनी उच्चकोटि की वैक्रियल ब्धि द्वारा अत्यन्त मनोहारी एवं परम अद्भुत नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। तदनन्तर वह भगवान महावीर को वन्दन कर अपने देवलोक को लौट गई। - गौतम गणधर द्वारा किये गये प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर ने श्रीदेवी का पूर्वजन्म बताते हुए फरमाया-“गौतम ! राजा जितशत्रु के राज्यकाल में सुदर्शन नामक एक समृद्ध गाथापति राजगह नगर में निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम प्रिया और इकलौती पुत्री का नाम भूता था । कन्या भूता का विवाह नहीं हुआ और वह जराजीर्ण हो वृद्धावस्था को प्राप्त हो गई। बुढ़ापे के कारण उसके स्तन और नितम्ब शिथिल हो गये थे। एक समय पुरुषादानीय प्रहंत् पार्श्व राजगृह नगर में पधारे। नगरनिवासी हर्षविभोर हो प्रभुदर्शन के लिए गये । वृद्धकुमारिका भूता भी अपने माता-पिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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