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पार्श्वनाथ की प्रार्या ]
भगवान् श्री पार्श्वनाथ
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आर्या सुव्रता ने यह सब देख कर उसके इस आचरण को साधुधर्म के विरुद्ध बताते हुए उसे ऐसा न करने का आदेश दिया पर सुभद्रा अपने उस असाधु आचरण से बाज न आई। सुव्रता द्वारा और अधिक कहे जाने पर सुभद्रा अलग उपाश्रय में चली गई । वहाँ निरंकुश हो जाने के कारण वह पासत्था, पासत्थविहारिणी, उसन्ना, उसन्नविहारिणी, कुशीला, कुशील- विहारिणी, संसत्ता, संसत्त - विहारिणी एवं स्वच्छन्दा, स्वच्छन्दविहारिणी बन गई ।
इस प्रकार शिथिलाचारपूर्वक श्रामण्यपर्याय का बहुत करने के पश्चात् अंत में प्रार्या सुभद्रा मासार्द्ध की संलेखना से किये ही आयुष्य पूर्ण कर सौधर्म कल्प में बहुपुत्रिका देवी रूप
से
वर्षों तक पालन
बिना आलोचना उत्पन्न हुई ।"
गौतम ने प्रश्न किया- "भगवन् ! इस देवी को बहुपुत्रिका किस कारण कहा जाता है ?"
भगवान् महावीर ने कहा - "यह देवी जब-जब सौधर्मेन्द्र के पास जाती है तो अपनी वैक्रियशक्ति से अनेक देवकुमारों और देवकुमारियों को उत्पन्न कर उनको साथ लिए हुए जाती है, अतः इसे बहुपुत्रिका के नाम से सम्बोधित किया जाता है ।"
गौतम ने पुनः प्रश्न किया- " भगवन् ! सौधर्म कल्प की आयुष्य पूर्ण होने के पश्चात् यह बहुपुत्रिका देवी कहाँ उत्पन्न होगी ?"
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भगवान् महावीर ने फरमाया - " सौधर्म कल्प से च्यवन कर यह देवी भारत के विभेल सन्निवेश में सोमा नाम की ब्राह्मण पुत्री के रूप में उत्पन्न होगी । उसका पिता अपने भानजे राष्ट्रकूट नामक युवक के साथ सोमा का विवाह करेगा । पूर्वभव को अत्युत्कट पुत्रलिप्सा के कारण सोमा प्रतिवर्ष युगल बालकबालिका को जन्म देगी और इस प्रकार विवाह के पश्चात् सोलह वर्षों में वह बत्तीस बालक-बालिकाओं की माता बन जायगी । अपने उन बत्तीस बालकबालिकाओं के क्रंदन, चीख-पुकार, सार-सँभाल, मल-मूत्र वमन को साफ करने आदि कार्यों से वह इतनी तंग आ जायगी कि बालक-बालिकाओं के मल-मूत्र से सने अपने तन-बदन एवं कपड़ों तक को साफ नहीं कर पायेगी ।
जहाँ वह सुभद्रा सार्थवाहिनी के भव में संतान के लिए छटपटाती रहती थी वहाँ अपने आगामी सोमा के भव में संतति से ऊब कर बंध्या स्त्रियों को धन्य प्रौर ने प्रापको हतभागिनी मानेगी ।
कालान्तर में सोमा सांसारिक जीवन को विडम्बनापूर्ण समझ कर सुव्रता नाम की किसी श्रार्या के पास प्रव्रजित हो जायगी और घोर तपस्या कर एक
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