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________________ श्रमणोपासक सोमिल] भगवान् श्री पार्श्वनाथ ५१३ धार्मिक परम्पराओं में काष्ठमुद्रा से मुख बाँधने की परम्परा थी और पार्श्वनाथ के समय में जैन परम्परा में भी मुखवस्त्रिका बाँधने की परम्परा थी । अन्यथा देव सोमिल को काष्ठमुद्रा का परित्याग करने का परामर्श अवश्य देता। जहाँ तक हमारा अनमान है, जैन साधु की मुखवस्त्रिका का तापस सम्प्रदाय पर भी अवश्य प्रभाव पड़ा होगा । काष्ठमुद्रा से मूह बाँधने वाली परम्परा का परिचय देते हुए राजशेखर ने षड्दर्शन प्रकरण में कहा है वोटेति भारते ख्याता, दारवी मुखवस्त्रिका । दयानिमित्तं भूतानां मुखनिश्वासरोधिका ।। घ्राणादनप्रयातेन, श्वासेनैकेन जन्तवः । हन्यन्ते शतशो ब्रह्मन्नरणमात्राक्षरवादिना ।। श्लो. ऐतिहासिक तथ्य की गवेषणा करने वाले विद्वानों को इस पर तटस्थ दृष्टि से गम्भीर विचार कर तथ्य प्रस्तुत करना चाहिए। इसके साथ ही जो मुख-वस्त्रिका को अर्वाचीन और शास्त्र के पन्नों की थूक से रक्षा के लिए' ही मानते हैं, उन विद्वानों को तटस्थता से इस पर पुनर्विचार करना चाहिये। बहुपुत्रिका देवी के रूप में पार्श्वनाथ की प्रार्या निरयावलिका सूत्र के तृतीय वर्ग के चतुर्थ अध्याय में बहुपुत्रिका देवी के सम्बन्ध में निम्नलिखित रूप से विवरण दिया गया है-- एक समय राजगृह नगर के गुण शिलक उद्यान में भगवान महावीर के पधारने पर विशाल जनसमुदाय प्रभु के दर्शन व वन्दन को गया । उस समय सौधर्मकल्प की ऋद्धिशालिनी बहुपुत्रिका देवी भी भगबान को वन्दन करने हेतु समवसरण में उपस्थित हुई। देशनाश्रमण एवं प्रभुवन्दन के पश्चात् उस देवी ने अपनी दाहिनी भुजा फैला कर १०८ देवकुमारों और बांई भुजा से १०८ देवकुमारियों तथा अनेक छोटी-बड़ी उम्र के पोगण्ड एवं वयस्क अगणित बच्चेबच्चियों को प्रकट कर बड़ी ही अद्भुत तथा मनोरंजक नाट्यविधि का प्रदर्शन किया और अपने स्थान को लौट गई। गौतम गणधर ने भगवान महावीर स्वामी से साश्चर्य पूछा-"भगवन् ! यह बहुपुत्रिका देवी पूर्वभव में कौन थी और इसने इस प्रकार की अद्भुत ऋद्धि किस प्रकार प्राप्त की है ?" भगवान् ने कहा-"पूर्व समय की बात है कि वाराणसी नगरी में भद्र नामक एक प्रतिसमृद्ध सार्यवाह रहता था। उसकी पत्नी सुभद्रा बड़ी सुन्दर मोर सुकुमार थी। अपने पति के साथ दाम्पत्य जीवन के सभी प्रकार के भोगों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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