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________________ श्रमणोपासक सोमिल ] भगवान् श्री पार्श्वनाथ एक रात्रि में अनित्य जागरण करते हुए उसके मन में विचार उत्पन्न हुआ कि तापसों से पूछ कर उत्तर दिशा में महाप्रस्थान करे, काष्ठमुद्रा में मुँह बाँध कर मौनस्थ रहे और चलते-चलते जिस किसी भी जगह स्खलित हो जाय अथवा गिर जाय उस जगह से उठे नहीं, अपितु वहीं पड़ा रहे । प्रातःकाल तापसों से पूछ कर सोमिल ने अपने संकल्प के अनुसार उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान कर दिया । चलते-चलते अपराह्नकाल में वह एक अशोक वृक्ष के नीचे पहुँचा । वहाँ उसने बाँस की छाब रक्खी और मज्जन एवं बलिवैश्वदेव करके काष्ठमुद्रा से मुँह बाँधे वह मौनस्थ हो गया । अर्द्ध रात्रि के समय एक देव ने आकर उससे कहा - "सोमिल तेरी प्रव्रज्या ठीक नहीं है ।" सोमिल ने देव की बात का कोई उत्तर नहीं दिया । देव ने उपर्युक्त वाक्य दो तीन बार दोहराया । पर सोमिल ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और मौन रहा । अन्त में देव वहाँ से चला गया । ५११ सोमिल निरन्तर उत्तर दिशा की ओर आगे बढ़ता रहा और दूसरे, तीसरे व चौथे दिन के अपराह्नकाल में क्रमशः सप्तपर्ण, अशोक और वटवृक्ष के नीचे उपर्युक्त विधि से कर्मकाण्ड सम्पन्न कर एवं काष्ठमुद्रा से मुख बाँध कर प्रथम रात्रि की तरह उसने तीनों रात्रियाँ व्यतीत कीं । तीनों ही मध्यरात्रियों में उपर्युक्त देव सोमिल के समक्ष प्रकट हुआ और उसने वही उपर्युक्त वाक्य " सोमिल तेरी प्रव्रज्या ठीक नहीं है, दुष्प्रव्रज्या है" को दो तीन बार दोहराया । सोमिल ने हर बार देव की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और मौनस्थ रहा । उत्तर दिशा में अग्रसर होते हुए सोमिल पाँचवें दिन की अन्तिम वेला में एक गूलर वृक्ष के नीचे पहुँचा और वहाँ अपनी कावड़ रख, वेदीनिर्माण, गंगामज्जन, शरक एवं अरणि से अग्निप्रज्वालन और दैनिक यज्ञ से निवृत्त होकर काष्ठमुद्रा में मुँह बाँध कर मौनस्थ हो गया । मध्यरात्रि में फिर वही देव सोमिल के समक्ष प्रकट होकर कहने लगा“सोमिल तुम्हारी यह प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है ।" सोमिल फिर भी मौन रहा । सोमिल के मौन रहने पर देव ने दूसरी बार अपनी बात दोहराई। इस बार भी सोमिल ने अपना मौन भंग नहीं किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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