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________________ ५१० जैन धर्म का मौलिक इतिहास [श्रमणोपासक सोमिल उस समय शुक्र भी वहाँ पाया और भगवान् को वन्दन करने के पश्चात् उसने अपनी वैक्रियशक्ति से अगणित देव उत्पन्न कर अनेक प्रकार के आश्चर्योत्पादक दृश्यों का धर्म परिषद् के समक्ष प्रदर्शन किया। तदनन्तर प्रभ को भक्तिभाव से वन्दन-नमन कर अपने स्थान को लौट गया।" गणधर गौतम के प्रश्न के उत्तर में शुक्र का पूर्वभव बताते हुए भगवान् महावीर ने कहा-"भगवान् पार्श्वनाथ के समय में वाराणसी नगरी में वेदवेदांग का पारंगत विद्वान् सोमिल नामक ब्राह्मण रहता था। एक समय भगवान पार्श्वनाथ का वाराणसी नगरी के अाम्रशाल वन में आगमन सुनकर सोमिल ब्राह्मण भी बिना छात्रों को साथ लिए उनको वन्दन करने गया । सोमिल ने पार्श्व प्रभु से अनेक प्रश्न पूछे तथा अपने सब प्रश्नों का सुन्दर एवं समुचित उत्तर पाकर वह परम सन्तुष्ट हुआ और भगवान् पार्श्वनाथ से बोध पाकर श्रावक बन गया। कालान्तर में असाधुदर्शन और मिथ्यात्व के उदय से सोमिल के मन में विचार उत्पन्न हुआ कि यदि वह अनेक प्रकार के उद्यान लगाये तो बड़ा श्रेयस्कर होगा । अपने विचारों को साकार बनाने के लिए सोमिल ने आम्रादि के अनेक पाराम लगवाये। कालान्तर में आध्यात्मिक चिन्तन करते हुए उसके मन में तापस बनने की उत्कट भावना जगी । तदनुसार उसने अपने मित्रों और जातिबन्धुओं को अशनपानादि से सम्मानित कर उनके समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कूटम्ब का भार सौंप दिया। तदनन्तर अनेक प्रकार के तापसों को लोहे की कड़ाहियाँ, कलछू तथा ताम्बे के पात्रों का दान कर वह दिशाप्रोक्षक तापसों के पास प्रवजित हो गया। - तापस होकर सोमिल ब्राह्मण छट्ठ-छट्ठ की तपस्या और दिशा-चक्रवाल से सूर्य की आतापना लेते हुए विचरने लगा। प्रथम पारण के दिन उसने पूर्व दिशा का पोषण किया और सोम लोकपाल की अनुमति से उसने पूर्व दिशा के कन्द-मूलादि ग्रहण किये। फिर कुटिया पर आकर उसने क्रमशः वेदी का निर्माण, गंगा-स्नान और विधिवत् हवन किया । इस सब कर्मकाण्ड को सम्पन्न करने के पश्चात् सोमिल ने पारणा किया। इसी प्रकार सोमिल ने द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ पारण क्रमश: दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में किये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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