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________________ स्थान दिया है। क्योंकि यह प्राणी का परम हितैषी, सच्चा मित्र और चिरसंगी है। ऐसे परम कल्याणकारी अद्वितीय सखा धर्म की रक्षा करने का प्रत्येक प्राणी तभी प्रयत्न करेगा जबकि वह धर्म का सर्वांगीण स्वरूप, परमोत्कृष्ट महत्त्व अच्छी तरह से समझता हो। धर्म के महत्त्व और स्वरूप को भलीभांति समझने और जानने का माध्यम उस धर्म का इतिहास है। इसके अतिरिक्त इतिहास की एक और महत्ती उपयोगिता है। वह हमें हमारी अतीत की भूलों, अतीत के हमारे सही निर्णयों, सामयिक सुन्दर विचारों और प्रयासों का पर्यवेक्षण कराने के साथ-साथ भूतकाल की भूलों से बचने एवं अच्छाइयों को दृढ़ता के साथ पकड़ कर उन्नति के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा करता रहता है। इस दृष्टि से विचार करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि किसी धर्म, देश और संस्कृति का सच्चा इतिहास वास्तव में उस धर्म, देश और संस्कृति का प्राण, जीवन-शक्ति, प्रकाशस्तम्म, प्रेरणास्रोत, पथ-प्रदर्शक, अभ्युन्नति का प्रशस्त मार्ग, खतरों से सावधान कर विनाश के गहरे गर्त से बचाने वाला सच्चा मित्र और सब कुछ है। . इतिहास वस्तुतः मानव को उस प्रशस्त मार्ग का, उस सीधी और सुन्दर सड़क का दिग्दर्शन कराता है, जिस पर निरन्तर चलते रहने से पथिक निश्चित रूप से अपने अन्तिम लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ होता है। इतिहास मानव को चरमोत्कर्ष के प्रशस्त मार्ग का केवल दिग्दर्शन मात्र ही नहीं कराता अपितु वह उस प्रशस्त पथ के पथिकों को उस मार्ग में आने वाली समस्त बाधाओं, रुकावटों, स्खलनाओं और छलनाओं से भी हर डग पर बचते रहने के लिए सावधान करता है। इतिहास में वर्णित साधना-पथ के अतीत के पथिकों के भले-बुरे अनुभवों से साधना-पथ पर अग्रसर होने वाला प्रत्येक नवीन पथिक लाभ उठा कर मार्ग में आने वाली सभी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करता हुआ निर्बाध गति से अपने ईप्सित लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। जैन समाज, खासकर श्वेताम्बर स्थानकवासी समाज में जैन धर्म के प्रामाणिक इतिहास की कमी चिरकाल से खटक रही थी। जैन कान्फ्रेन्स और मुनिमण्डल ने सम्मेलन में भी अनेक बार जैन धर्म का प्रामाणिक इतिहास निर्मित करवाने का निर्णय किया पर किसी कर्मठ इतिहासज्ञ विद्वान् ने इस अतिकष्टसाध्य कार्य को सम्पन्न करने का भार अपने जिम्मे नहीं लिया अतः इसे मूर्त स्वरूप नहीं मिल सका। समाज द्वारा चिराभिलषित इस कार्य को सम्पन्न करने की दृष्टि से ( ३५ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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