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भ० पा० का धर्म परिवार ]
भगवान् श्री पार्श्वनाथ
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श्रमरण बीच-बीच में शाक्य देश में जाकर अपने धर्म का उपदेश करते थे । शाक्यों में प्रालारकालाम के श्रावक अधिक थे, क्योंकि उनका श्राश्रम कपिलवस्तु नगर में ही था । श्रलार के समाधिमार्ग का अध्ययन गौतम बोधिसत्त्व ने बचपन में ही किया। फिर गृहत्याग करने पर वे प्रथमतः आलार केही आश्रम में गये और उन्होंने योगमार्ग का आगे अध्ययन प्रारम्भ किया । आलार ने उन्हें समाधि की सात सीढ़ियां सिखाई। फिर वे उद्रक रामपुत्र के पास गये और उससे समाधि की आठवीं सीढ़ी सीखी, परन्तु इतने ही से उन्हें संतोष नहीं हुआ, क्योंकि उस समाधि से मानव-मानव के बीच होने वाले विवाद का अन्त होना संभव नहीं था । तब बोधिसत्त्व "उद्रक रामपुत्र" का आश्रम छोड़कर राजगृह चले गये । वहाँ के श्रमणसम्प्रदाय में उन्हें शायद निर्ग्रन्थों का चातुर्याम-संवर ही विशेष पसंद आया, क्योंकि प्रागे चलकर उन्होंने जिस श्रार्य अष्टांगिक मार्ग का प्रवर्त्तन किया, उसमें चातुर्याम का समावेश किया गया है ।"
भ० पार्श्वनाथ का धर्म-परिवार
पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ के संघ में निम्नलिखित धर्म - परिवार
था :---
गणधर एवं गण
केवली
मनः पर्यवज्ञानी
अवधिज्ञानी
चौदह पूर्वधारी
वादी
- एक हजार चार सौ [१,४०० ]
- साढ़े तीन सौ [ ३५० ]
- छह सौ [ ६०० ]
अनुत्तरोपपातिक मुनि - एक हजार दो सौ [१,२००]
साधु
साध्वी
श्रावक
श्राविका
१ कल्पसूत्र'
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- शुभदत्त प्रादि आठ गणधर और आठ ही गण
- एक हजार [१,००० ]
- साढ़े सात सौ [७५० ]
"सूत्र १५७ ।
- श्रार्यदिन प्रादि सोलह हजार [१६,००० ] - पुष्पचूला प्रादि प्रड़तीस हजार [३८,००० ] - सुनन्द आदि एक लाख चौसठ हजार [१,६४,००० ]
-नन्दिनी प्रादि तीन लाख सत्ताईस हजार [३,२७,०००]'
३ लाख ७७ हजार श्राविका [त्रि.श.पु. च. १ ४ १ ३१५ ]
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